________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-२०
२६७ विरमण, मैथुनविरमण और परिग्रह विरमण) के धारक होते हैं, पर्वतों की गहन गुफाओं में जा-जाकर जो ध्याननिमग्न बनते हैं, ऐसे निर्ग्रन्थ महापुरुषों को कैसा अपूर्व आन्तरिक सुख, आत्मानन्द होता है, वह तो केवलज्ञानी ही बता सकते हैं। वे अपनी प्रमोदभावना के पात्र बनते हैं।
वैसे जो महात्मा पुरुष ज्ञानी हैं, सतत शास्त्राध्ययन में लीन रहते हैं, सदैव धर्मोपदेश देते रहते हैं, शांत होते हैं, इन्द्रियाँ जिनको वश होती हैं और जगत में जो परमात्मा जिनेश्वरदेव के शासन को प्रसारित और प्रज्वलित करते हैं, ऐसे महात्मापुरुष भी प्रमोदभावना के विषय बनते हैं अपने लिए | अहंकार से पतन होता है :
ऐसे महात्मापुरुषों के प्रति, ज्ञानीपुरुषों के प्रति आपकी ज्ञानदृष्टि, आपकी गुणदृष्टि खुली रहनी चाहिए। यदि गुणदृष्टि नहीं होगी तो आपकी दृष्टि में इनके भी दोष दिखेंगे। छद्मस्थ जीवों में दोष तो होते ही हैं, दोषदृष्टि से दोष दिखते हैं, गुणदृष्टि से गुण दिखते हैं। आपकी गुणदृष्टि सलामत होगी तो आपको ऐसे महात्माओं में गुण दिखेंगे । अन्यथा महात्माओं में भी दोष दिखेंगे। जमाली मुनि को भगवान महावीर में भी दोष दिखाई दिया था! भगवान का कथन गलत लगा था! भगवान ने कहा : 'कड़ेमाणे कड़े' जो कार्य हो रहा है, वह कार्य 'हो गया' ऐसा वचनप्रयोग हो सकता है, संसार में वैसी व्यवहारभाषा चलती है | भोजन बन रहा हो, तो भी 'भोजन बन गया' वैसा प्रयोग हो सकता है। जमाली मुनि को अनेक दिनों तक, अनेक दृष्टान्तों से भगवान ने समझाया भी था, परन्तु वह नहीं माना। भगवान का अनादर करके भगवान का त्याग कर, वह चला गया था। उसके प्रबल 'अहं' ने उसको पथभ्रष्ट कर दिया। प्रबल 'अहं' मनुष्य का पतन करवाता ही है।
ऐसे महामुनि कि जो आत्मसाधना में निरत होते हैं, उनको अपार आन्तरिक सुख होता है। वे दुःखी नहीं होते, वे परम सुखी होते हैं। उनके प्रति प्रमोदभावना होनी चाहिए यानी उनके प्रति अपने हृदय में प्रेम होना चाहिए। श्रद्धावान-ज्ञानवान-चारित्र्यवान गृहस्थ भी प्रमोदभावना के पात्र :
वैसे जो गृहस्थ हैं, परन्तु जिनके पास ज्ञानमूलक श्रद्धा है, परमात्मा जिनेश्वरदेव के धर्मशासन के प्रति अविचल श्रद्धा है, विश्वास है और वे श्रद्धा से दान, शील, तप और शुभ भावना रूप चार प्रकार की धर्म-आराधना करते रहते हैं, वे भी प्रमोदभावना के विषय हैं। उनकी दानप्रियता, उनकी शीलद्रढ़ता,
For Private And Personal Use Only