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प्रवचन-२०
____२६४ परमात्मा के प्रति अपना हृदय प्रेम से भरपूर होना चाहिए। सुख की दृष्टि से यह प्रमोदभाव होना चाहिए | गुणों की दृष्टिसे भी उनके प्रति अपार प्रमोदभाव जाग्रत होना चाहिए। अरिहंत परमात्मा में अनन्त गुण होते हैं। उनके श्रेष्ठ पुण्यप्रकर्ष से उत्पन्न भी अनेक गुण होते हैं। दुनिया के लाखों-करोड़ों मनुष्य उनके प्रति आकर्षित होते हैं।
तीर्थंकरों का अद्वितीय पुण्यप्रकर्ष उनके समवसरण में जाकर देखो! मज़ा आ जाएगा!
सभा में से : कैसे जाये उनके समवसरण में? आजकल भारत में या वर्तमान विश्व में कहाँ हैं तीर्थंकर? कल्पना से जाइए समवसरण में :
महाराजश्री : नहीं हैं भारत में तीर्थंकर, नहीं हैं वर्तमान विश्व में तीर्थंकर | महाविदेह क्षेत्र में हैं तीर्थंकर, परन्तु हम उधर जा नहीं सकते इसलिए नहीं के बराबर ही हैं! परन्तु हम चाहें तो मन से जा ही सकते हैं समवसरण में। कल्पनासृष्टि में समवसरण लाइए और ध्यान केन्द्रित कर तीर्थंकर परमात्मा की ओर देखिए । कितना अद्भुत रूप होता है तीर्थंकरों का! उनका रूप देखने के बाद दुनिया का कोई भी रूप भक्त हृदय को आकर्षित नहीं कर सकता। दुनिया के सारे रूप फीके लगते हैं। उनकी आठ प्रकार की शोभा, जिसको 'अष्ट प्रातिहार्य' कहते हैं, आप कल्पना से देखो | आपकी तबीयत खुश हो जायेगी।
अशोकवृक्ष, तीन छत्र, भामंडल, चामर, सिंहासन, दिव्य ध्वनि, देवदुंदुभि और पुष्पवृष्टि-ये अष्ट प्रातिहार्य होते हैं। देवनिर्मित समवसरण भी कितना मनोहर और आह्लादक होता है! कल्पनासृष्टि में भी किया हुआ परमात्मपरिचय, उनके प्रति प्रमोदभाव जाग्रत करता है, उनके प्रति स्नेह और सद्भाव जाग्रत करता है। परिचय के बिना स्नेह, प्रेम, सद्भाव कैसे जाग्रत होगा? परिचय के बिना प्रेम कैसे होगा? :
इस दुनिया में भी किसी से परिचय हुए बिना प्रेम होता है? जिस जिस के साथ आपका प्रेम है, पहले उनसे आपका परिचय हुआ ही होगा। किसी का परिचय सहज रूप से हो जाता है तो किसी का परिचय करना पड़ता है। परमात्मा का परिचय करना पड़ता है। आज सदेह तीर्थंकर नहीं हैं तो कल्पनासृष्टि में परमात्मा का परिचय कर सकते हो। इसमें परमात्मा के मंदिर
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