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प्रवचन-१५ का रूप क्या था? जड़-पुद्गलों की रचना! शरीर और शरीर से संबंधित तत्त्व जड़-पुद्गल ही हैं।
जड़राग को कम करने के लिए सोचो कि जड़ पुदगल रचना परिवर्तनशील है। पदार्थ बदलते रहते हैं। आज जो पदार्थ अच्छा, सुन्दर लगता है, वही पदार्थ कल देखना भी पसन्द नहीं आए! जो जड़ पदार्थ आज बहुत मीठा लगता है, कल वही पदार्थ कड़वा बन जाए! कोई स्थिरता नहीं होती पदार्थों की।
'जड़-पुद्गलों से मेरी आत्मा ज्यादा मूल्यवान है। जड़ के लिए चेतन को नुकसान नहीं पहुँचाना है। जड़ राग से चेतन आत्मा पापकर्मों से बंधती है| यही बड़ा नुकसान है। जड़ राग में से ही अशान्ति, क्लेश और सन्ताप पैदा होते हैं।' गर्भपात तो पाप ही रहेगा :
ऐसा मानसिक चिन्तन करते रहो और क्रियात्मक रूप से दान, शील और तप की आराधना करते रहो। दान से धन-दौलत का राग कम होगा। शील से वैषयिक राग कम होगा। तप से शरीर का मोह कम होगा। मदनरेखा संसार के सुखों के प्रति कितनी अनासक्त होगी? जंगल में चली गई, गर्भवती थी वह । कोई चिंता नहीं है, कोई व्यथा नहीं है। श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण करती हुई निर्भय और निश्चित बनकर चल रही है। उदरस्थ जीव को कष्ट न हों, उसका ध्यान रखती है | गर्भस्थ जीव का कभी अहित न हो जाए-इसका खयाल करती है।
सभा में से : उस समय गर्भपात पाप माना जाता होगा? __ महाराजश्री : इस समय गर्भपात धर्म माना जाता है क्या? गर्भपात कितना भयंकर पाप है, यह बात भले आज भुला दी जाती हो, परन्तु गर्भपात करनेवाली स्त्रियों को भवान्तर में वंध्या ही रहना पड़ेगा। संतानप्राप्ति होगी ही नहीं! इतना ही नहीं, गर्भपात करनेवाले ऐसा घोर अशातावेदनीय कर्म बाँधते हैं कि अनेक जन्मों तक शारीरिक रोग के भोग बनते रहते हैं। इस विषय पर फिर कभी बात करूँगा।
आज, बस इतना ही।
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