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प्रवचन-१२
१६४ मना नहीं कर सका। मौन का अर्थ होता है अनुमति । 'मौनं अनुमतम्' | चतुरा दौड़ी महामंत्री की हवेली की ओर | पथमिणी ने दौड़ती आती हुई चतुरा को देखा | कुछ कौतूहल हुआ। परन्तु चतुरा ने पहुँचते ही पथमिणी से कहा : 'देवी, अभी एक बहुत उत्तम अवसर आया है महामंत्री को अकलंक सिद्ध करने का। लीलावती रानी भी निष्कलंक सिद्ध हो जाएगी। राजा का हाथी व्यन्तर के प्रभाव में आकर निश्चेष्ट पड़ा है। राजा विलाप कर रहे हैं। सभी मांत्रिक-तांत्रिकों ने उपाय कर लिए, फिर भी हाथी सजीवन नहीं हुआ है । मैंने हिम्मत कर महाराजा को कह दिया : 'यदि महामंत्री का पूजनवस्त्र हाथी पर डाल दिया जाय तो अवश्य हाथी उपद्रवरहित हो जाएगा, आप आज्ञा करें तो मैं वस्त्र ले आऊँ ।' महाराजा ने मौन संमति दे दी है। इसलिए मैं दौड़ती हुई आयी हूँ| आप कृपा कर मुझे महामंत्री का पूजन वस्त्र दे दो। मुझे संपूर्ण विश्वास है कि वस्त्र के प्रभाव से हाथी अच्छा हो जाएगा। बस, फिर तो महाराजा को अपनी गलती खयाल में आ ही जाएगी। महामंत्री के प्रति उनका पूर्ववत सद्भाव बन जायेगा | रानी के प्रति भी राजा निःशंक बन जाएँगे। आप देरी मत करें....निश्चित होकर वस्त्र दे दें।' चतुरा के हृदय में रानी और महामंत्री को निर्दोष, निष्कलंक सिद्ध करने की पूर्ण तमन्ना है। चूंकि उसके हृदय में इन दोनों के प्रति स्नेह और सद्भाव है। गुणवान पुरूषों को आपत्ति में देखकर उनके अनुरागी मनुष्यों को गहरा दुःख होता है और वे उन गुणवानों की आपत्ति दूर करने तत्पर बनते हैं | चतुरा उसी मौके की तलाश में थी, 'कब अवसर मिले और रानी एवं महामंत्री का कलंक दूर हो जाय!' आज उसको अवसर मिल ही गया।
पथमिणी को भी चतुरा की बात अँच गई। उसने पूजन का वस्त्र दे दिया चतुरा को| चतुरा वस्त्र लेकर चली गई और पथमिणी तुरन्त ही भूमिगृह में लीलावती के पास पहुंच गई। लीलावती अभी-अभी ही जाप करके निवृत्त हुई थी। ८० हजार से भी ज्यादा जाप हो गये थे। पथमिणी ने लीलावती के दोनों हाथ पकड़ कर कहा : 'रानीजी! बस, अब दुःख के दिन गए समझ लो।' लीलावती ने कहा : 'मेरे दिन दुःख के हैं ही नहीं! मेरे दिन तो अपूर्व सुख में व्यतीत हो रहे हैं! मेरे जीवन के श्रेष्ठ दिन हैं ये! तुम मेरी कितनी खातिर करती हो! श्री नवकार मंत्र के जाप-ध्यान में अपार आन्तर आनन्द मिल रहा है।'
तेरी बात सही है लीला, परन्तु मैं तुझे आज अच्छा समाचार देने आई हूँ। अब तेरा कलंक गया समझ लो! पथमिणी ने चतुरा से सुना हुआ सारा वृत्तांत कह सुनाया। लीलावती को हर्ष हुआ, रोम-रोम विकस्वर हो उठा, हृदय
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