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प्रवचन-१२ शुरू किए। उनको मालूम पड़ा कि हाथी के शरीर में किसी व्यंतर देव का प्रवेश हो गया है। व्यंतर को भगाने के लिए अनेक उपाय करने लगे परन्तु, व्यंतर नहीं निकला। तांत्रिकों ने भी अपने प्रयोग किए, वे भी निष्फल रहे | राजा ने मांत्रिकों और तांत्रिकों से कहा : 'तुम चाहोगे उतना धन दूँगा, परन्तु मेरे प्रिय हाथी को सजीवन करो। यदि हाथी सजीवन नहीं हुआ तो मैं चिता में अग्निस्नान करूँगा।' चतुरा ने उपाय खोज निकाला : ___ मंत्रीमंडल चिंतित हो गया । अन्तःपुर में रानियाँ रोने लगीं। प्रजा को भी अपार दुःख होने लगा। 'क्या करना हाथी को सजीवन करने के लिए?' किसी को कुछ भी नहीं सूझता है। सब निराशा के सागर में डूब गए। हाथी के पास ही राजा बैठ गया था। अनेक परिचारक-परिचारिकाएँ भी वहाँ उपस्थित थीं। रानी लीलावती की दासी चतुरा भी वहाँ उपस्थित थी। चतुरा के चित्त में सहसा एक नया विचार उत्पन्न हुआ। 'यदि महामंत्री पेथड़शाह का पवित्र पूजनवस्त्र हाथी पर डाल दिया जाय, तो अवश्य हाथी व्यंतर से मुक्त हो सकता है! मेरी रानी का ज्वर उस वस्त्र के प्रभाव से दूर हो गया, तो हाथी का उपद्रव क्यों दूर नहीं होगा? परन्तु, महाराजा मेरे इस प्रस्ताव को मानेंगे? उनके हृदय में महामंत्री के प्रति गुस्सा है। अरे, उसी वस्त्र को लेकर तो राजा ने मेरी मालकिन रानी को दुःशीला समझ लिया और महामंत्री जैसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी को भी दुराचारी मान लिया।'
चतुरा की हिम्मत नहीं बढ़ी राजा को अपनी बात करने की। उधर राजा अति उद्विग्न बनता गया। अग्निस्नान करने की हठ पकड़ ली। लोग रोने लगे| चतुरा का हृदय भी भर आया। उसके मुँह से निकल ही गया : 'महाराजा, मुझे एक उपाय याद आया है, हाथी को सजीवन करने का। आप आज्ञा करें तो मैं बता सकती हूँ।'
राजा ने चतुरा के सामने देखा। राजा की आँखों में चतुरा ने जिज्ञासा पाई। चतुरा ने कहा : 'महाराजा, यदि इस हाथी पर महामंत्री का पूजनवस्त्र डाल दिया जाए तो हाथी व्यंतर के प्रभाव से मुक्त बन सकता है। मुझे पूर्ण विश्वास है। रानी लीलावती का ज्वर इसी वस्त्र से दूर हुआ था, महाराजा!' चतुरा का अटूट विश्वास :
राजा महामंत्री का नाम आने से थोड़ा-सा नाराज तो अवश्य हुआ, परन्तु
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