________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-११
१५५ अवस्था का चिन्तन करने का विधि है। आप लोगों ने इस महत्त्वपूर्ण विधि का अनादर कर दिया है न? अब आदर करोगे न? परमात्मपूजन का अनुष्ठान 'यथोदितं' बनाने के लिए संपूर्ण विधि का ज्ञान होना चाहिए और उस ज्ञान के अनुरूप क्रिया करनी चाहिए | आज समय कुछ ज्यादा ही हो गया! बह गये परमात्म चिन्तन में। वह पेथड़शाह का प्रसंग आज रह गया। रानी लीलावती को महामंत्री ले आते हैं अपनी हवेली में और गुप्त निवास में रखते हैं। वहाँ लीलावती क्या साहस करती है और महामंत्री की पत्नी कैसे बचाती है?....वगैरह रसपूर्ण बातें आगे बताऊँगा। परमात्मतत्त्व के साथ रानी लीलावती किस प्रकार आंतर-संबंध स्थापित करती है, वह बात भी बताऊँगा। स्मरण, दर्शन, स्तवन और स्पर्शन-इन चार भूमिकाओं में से गुजर कर मनुष्य परमात्मतत्त्व का अनुभव कर सकता है।
आज, बस इतना ही।
For Private And Personal Use Only