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प्रवचन-११
१४९ परमात्मा का स्मरण, दर्शन और स्तवन करने से, स्पर्शन की अभिलाषा स्वतः जाग्रत होती है। जिसका बार-बार स्मरण होता हो, जिनका दर्शन किये बिना चैन नहीं हो और जिनके गीत गाया करते हो, उनको स्पर्श करने को हृदय लालायित हो ही जाता है। परमात्मा की पूजा कैसे करते हो?
आप में से कई भाई-बहन प्रतिदिन परमात्मपूजन करते होंगे। मैं उनसे पूछता हूँ कि वे परमात्मपूजन किस प्रकार करते हैं? जिस प्रकार 'चैत्यवंदनभाष्य' ग्रन्थ में परमात्मपूजन की विधि बताई है, उसी प्रकार या गतानुगतिक?
सभा में से : 'चैत्यवंदनभाष्य' पढ़े ही नहीं हैं, हमको पढ़ाया गया नहीं है, हम तो गतानुगतिक... देखा-देखी करते हैं पूजन!
महाराजश्री : जो धर्मक्रिया आप करते हो, उस धर्मक्रिया के विषय में आपको यथार्थ जानकारी प्राप्त करनी ही चाहिए और शास्त्रीय मार्गदर्शन लेना ही चाहिए। गतानुगतिक... देखा-देखी धर्मानुष्ठान करने में अनेक दोष, अनेक अविधि प्रविष्ट हो जाते हैं, आगे चलकर अविधि भी विधि बन जाता है। 'मेरे दादा इस प्रकार पूजन करते थे, मेरे पिता भी इस प्रकार करते थे... क्या वे अविधि से करते थे?' आपके दादा, पिता वगैरह अविधि कर ही नहीं सकते क्या? वे सर्वज्ञ होते हैं? वीतराग होते हैं? कैसे बुद्धिहीन तर्क करते हो। 'हमारे दादा इस प्रकार करते थे।'
परमात्मा की अंगपूजा, अग्रपूजा और भावपूजा का क्रम समझो। अंगपूजा के बाद अग्रपूजा और अग्रपूजा के पश्चात् भावपूजा की जाती है। प्रतिमाजी के ऊपर जो जल, चन्दन, पुष्प आदि चढ़ाया जाता है वह अंगपूजा है। भगवान के आगे जो अक्षत, फल नैवेद्य आदि रखा जाता है वह अग्रपूजा है और चैत्यवंदन किया जाता है वह भावपूजा है। पूजा में से अवस्था चिंतन को हम भूल गए हैं :
इस पूजनविधि में एक महत्त्वपूर्ण पूजन है 'अवस्था चिंतन' का । अग्रपूजा कर लेने के बाद और भावपूजा से पूर्व, परमात्मा जिनेश्वर देव की तीन अवस्थाओं का चिन्तन करना होता है। किया है कभी? कैसे करोगे? आपको शायद मालूम ही नहीं होगा कि 'अवस्थाचिन्तन' क्या है और कैसे किया जाता है? परमात्मपूजन की विधि में से जैसे कि 'अवस्था चिन्तन' निकल ही गया
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