________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-११
१४८ खो दिया है कभी? परन्तु आप ऐसे निर्जन तीर्थस्थानों में जाना पसन्द करते भी हो क्या? तीर्थस्थानों में जाने का प्रयोजन परमात्मदर्शन और परमात्मपूजन होता है क्या? तीर्थस्थानों में भवसागर तैरने की दृष्टि से जाते हो क्या? नहीं, तीर्थस्थानों में आप अब 'पिकनिक' की दृष्टि से जाने लगे हो। वहाँ पर भी रात्रिभोजन करने लगे हो, वहाँ पर भी अभक्ष्य खाने लगे हो, वहाँ पर भी बुरे व्यसन छोड़ते नहीं। कई लोग तो तीर्थस्थानों में जाते हैं परन्तु मंदिर में नहीं जाते, धर्मशाला के सुविधापूर्ण मकान में ताश खेलते रहते हैं या रेडियो सुनते रहते हैं अथवा अर्थहीन गपशप में समय बरबाद करते हैं। धर्मशालाएँ बन रही हैं पापशालाएँ :
तीर्थधामों की धर्मशालाएँ पापशालाएँ नहीं बन रही क्या? नाम कितना अर्थपूर्ण है 'धर्मशाला'! धर्म-आराधना करने के लिए दानवीर लोग धर्मशाला बनवाते हैं, उसका उपयोग करना पापाचरण करने में? यह दानवीरों के प्रति द्रोह नहीं है क्या? अपने जैन तीर्थों में भी अब 'करप्शन' ज्यादा बढ़ गया है। आज का आदमी ही 'करप्टेड' बन गया है न! ___मेरा आप लोगों से आग्रह है कि आप तीर्थस्थानों का सदुपयोग करें। तीर्थस्थानों में बने हुए भव्य जिनमन्दिरों में जाकर अपूर्व चित्तशान्ति प्राप्त करें। जिनमंदिरों में बिराजित नयनरम्य भव्य जिनप्रतिमाओं का आलंबन लेकर परमात्मतत्त्व के साथ आन्तरिकसंबंध स्थापित करें। जीवन और आत्मा :
मानव-जीवन की सफलता का आधार है धर्मपुरुषार्थ। यदि अर्थपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ में ही जीवन पूरा बीता दिया तो बहुत बड़ी गलती होगी, जन्म-जन्म उसकी सजा भोगनी पड़ेगी। गंभीरता से सोचो। अर्थ और काम, धनसंपत्ति और भोगविलास क्षणिक हैं, विनाशी हैं, दुःखदायी हैं, उनके पीछे पागल मत बनो । मन-वचन और काया की शक्ति को विनाशी के पीछे व्यर्थ मत गँवा दो। जो शाश्वत है, जो अविनाशी हैं उसको पाने का भव्य पुरुषार्थ कर लो। जीवन से भी ज्यादा आत्मा से प्यार कर लो। आत्मा की शुद्धि और उन्नति के लिए जीवन को दुःखपूर्ण भी बीताना पड़े, बीता दो। जीवन को सुखपूर्ण बनाने के लिए आत्मा का अहित मत करो। जीवन चंचल हैं, आत्मा शाश्वत है। जीवन अस्थिर है, आत्मा स्थिर है। आत्मा की उन्नति में जीवन को साधन बनाओ। जीवन साध्य नहीं है, साधन है।
For Private And Personal Use Only