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प्रवचन- १०
पूरी जाँच करने के बाद निर्णय करो :
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कोई भी बात सुनकर या कोई भी प्रसंग देखकर अत्यन्त राग या अत्यन्त द्वेष में बह न जाओ। अपने राग-द्वेष के भावों पर संयम रखो, अन्यथा आप विचार नहीं कर सकोगे। सुनी हुई बात पर या आँखों से देखी हुई घटना पर शीघ्र निर्णय मत करो। उस पर विचार करो । तलाश पूरी करो । तब जाकर निर्णय करो। निर्णय कठोरता से या निर्दयता से मत करो ।
लीलावती को देशनिकाले की सजा :
महामंत्री पेथड़शाह के प्रति राजा को कितना विश्वास था ! राजा जानता था कि पेथड़शाह ने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है । ब्रह्मचारी महामंत्री के प्रति प्रजा को भी खूब सद्भाव था । ऐसे महामंत्री को भी राजा ने दुराचारी मान लिया ! मात्र एक वस्त्र के कारण ! मंत्री का वस्त्र रानी के पास देखकर ! रानी का ज्वर कैसे चला गया, यह भी पूछने की राजा को नहीं सूझी। जिस लीलावती के प्रति अपार स्नेह था, उसी रानी को व्यभिचारिणी मान लिया! यह है आपका संसार! क्षण में राग द्वेष में बदल जाय! न राग स्थायी, न द्वेष स्थायी! राजा का मन तीव्र द्वेष से भर गया था। महामंत्री और महारानी को कड़ी सजा करने को उसका मन मचल रहा था । परन्तु महामंत्री को सजा सुनाने की हिम्मत राजा में तो नहीं थी। महामंत्री का प्रभाव सम्पूर्ण राज्य पर छाया हुआ था । राजा तो नाम का ही था, सर्वेसर्वा महामंत्री पेथड़शाह थे। राजा की हिम्मत नहीं हो रही थी महामंत्री को सजा करने की । दुनिया का रिवाज है निर्बल को सताने का! बलवान को कोई नहीं सताता । राजा की दृष्टि में महामंत्री बलवान थे, रानी निर्बल थी! लीलावती को बुलाकर सजा सुना दी : 'तुम मेरे राज्य में से चली जाओ। तुम्हारा मुँह मैं देखना नहीं चाहता!' परन्तु यह सजा महामंत्री की उपस्थिति में राजा ने सुनाई ! राजा ने यूँ सोचा होगा कि 'रानी के प्रेम में महामंत्री है, इसलिए रानी के साथ महामंत्री चला जाएगा!' कैसी भ्रमणाओं में मनुष्य भटकता है ! राजा महामंत्री के आंतरव्यक्तित्व को कहाँ जानता था ? राजा ने जब लीलावती को सजा कर दी, महामंत्री मौन रहे और कुछ भी नहीं बोले ।
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महामंत्री स्वस्थ :
लीलावती की दासी चतुरा को सारी बात समझ में आ गई थी। कदंबा के निवासस्थान से महामंत्री और लीलावती के प्रणय की बात प्रसारित हो रही