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प्रवचन-९ करते समय भी इधर-उधर की बातें करते रहते हैं! मौन को पाप मानते हो क्या? बोलना धर्म और मौन रहना पाप, नहीं? जो बोलना आवश्यक है, वह बोलते नहीं, जो बोलना पाप है, अविवेकपूर्ण है, वह बोलते रहते हो। कितना घोर अविवेक छा गया है? जीवन के कौन-से क्षेत्र में आप लोग विवेकपूर्ण और औचित्यपूर्ण व्यवहार करते हो? पेथड़शाह का जीवन आदर्श जीवन कहा जा सकता है। ब्रह्मचारी भीम श्रावक की भेंट का भव्य स्वागत कर, हजारों रूपयों का सद्व्ययकर, अपने निवासस्थान में लाते हैं और उस परमात्म-पूजन के वस्त्र को सुयोग्य स्थान पर स्थापित कर प्रतिदिन उसका दर्शन करते हैं। शुभ मनोभाव की जागृति में जो निमित्त बना है, उसका कितना उच्च मूल्यांकन कर रहे हैं महामंत्री? ध्यान में रहे, संसार के सारे वैभव प्राप्त होना दुर्लभ नहीं, शुभ मनोभाव जागृत होना दुर्लभ है। शुभ विचार, पवित्र मनोभाव, उत्तम अध्यवसाय कितने मूल्यवान हैं जानते हो? एक उत्तम अध्यवसाय अनन्तअनन्त कर्मों की निर्जरा करता है! एक शुभ विचार देवलोक का असंख्य वर्षों का आयुष्यकर्म बाँध सकता है, एक धर्मविचार धर्मध्यान में से शुक्लध्यान में ले जा सकता है। अनन्त जन्मों में अपने जीव ने क्या नहीं पाया? देवलोक के दिव्य सुख अनन्त बार पाए हैं, परन्तु कर्मनिर्जरा के असाधारण कारणभूत शुभ-शुद्ध अध्यवसाय नहीं पाए! आत्मगुणों के आविर्भाव में निमित्तभूत विचारवैभव नहीं पाया। व्रत ग्रहण करने में भी विवेक चाहिए :
ऐसे निमित्तों के सतत संपर्क में रहना चाहिए कि जिन निमित्तों से सतत शुभ विचारधारा बहती रहे| जब विचारधारा बहने लगेगी तब जीवनव्यवहार भी शुद्ध बनने लगेगा | जीवन में से अशुद्धियाँ स्वतः दूर हो जाएँगी। महामंत्री पेथड़शाह ने उस भेंट का निमित्त पकड़ लिया। प्रतिदिन उस भेंट का दर्शन करते हैं। उस वस्त्र को पहनते नहीं हैं। एक दिन महामंत्री की धर्मपत्नी ने पूछा : 'स्वामीनाथ, आप इस भेंट में आए हुए पूजनवस्त्र का उपयोग क्यों नहीं करते?' महामंत्री ने कहा : 'देवी, यह भेंट ब्रह्मचारी के लिए है, मैं ब्रह्मचारी नहीं हूँ, उसका उपयोग नहीं कर सकता!' पथमिणी कुछ क्षण विचार में खो गई, फिर पूछा : 'नाथ, तो क्या ब्रह्मचर्य-व्रत आप धारण करना चाहते हैं?' पेथड़शाह ने कहा : 'जब तुम्हारी भावना होगी तब अपन साथ ही ब्रह्मचर्य-व्रत धारण करेंगे। मैं तुम्हारी भावना जानना चाहता हूँ।'
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