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[सविवरणं धर्मोपदेशमालाप्रकरणम्
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३१४] उवरोहयाए कज्जं की उवरोहयाए कीरइ उवसमेण हणे कोहं
१५४ २३६
[द.वै./८/३९] [ए]
[उत्त./२३/३८] [उत्त./२३/३६] [ति.गा./१०६६]
एगम्मि महारुक्खे एगे अप्प[5 जिए एगे जिए जिया पंच एते देवणिकाया एतेसिं धायओ जो उ एवं करेंति संबुद्धा एवं चेव पमाणं एसा णो छट्ठिया जाई
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[द.वै./अ.२/११] [स.र./३२] [उत्त./१३/७उ.] [क]
१६९
११८
[आ.नि.भा./२०५] [
] [आ.नि./१०९]
१५९ २८४
२१
कडगा य ते कुंडला य ते करकंडू कलिंगेसु कलहकरो डमरकरो काऊण नमोक्कारं किं ताए नाणलच्छीए? कुवियस्स आउरस्स य कुसलाणुबंधे कम्मोदएण कोहो य माणो य अणिग्गहीया
१९७ १७७
३२
[द.वै./८/४०]
२३६
गंगाए नाविओ नंदो गुणदोसो णावेक्खइ गोटुंगणस्स मज्झे
२८६ २८१ १६४
घम्मा वंसा सेला
२०४
[आ.नि.भा./२०९] [ ]
[बृ.सं./२११] [च] [उत्त.३/१ गा.] [आव.नि./८३२]
२२२
चत्तारि परमंगाणि चोल्लगपासगधण्णे
५२
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