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________________ नामावलि ग्रथित करी दीधेली छे. त्यारेधर्मदासगणीनीउपदेशमालाजे ५४१ गाथा जेटली बृहत् कृति छे, तेमां लगभग ७० जेटली ज कथाओनो उल्लेख करवामां आव्यो छे. ___ ग्रन्थकारे पोतानी प्रस्तुत नूतन कृतिनी रचना करवा पूर्वे, धर्मदास गणीनी उक्त 'उपदेशमाला' उपर विस्तृत विवरण कर्यु हतुं जेनो उल्लेख अनेक ठेकाणे आमां करवामां आव्यो छे अने जे जे कथाओ उक्त विवरणमां तेमणे विस्तृत रूपे ग्रथित करी छे तेनी पुनरुक्ति आ विवरणमां न करतां ते विवरणमांथी ज ते ते कथाओ जाणी लेवानी भलामण करी छ. पन्दरमा सैकामां पाटण, खंभात, भरूच, देवपत्तन विगेरे स्थानोनां प्रसिद्ध ज्ञानभण्डारोनुं अवलोकन करी, कोई संशोधक विद्वाने 'बृहट्टिप्पनिका' नामनी जे एक बहु ज उपयोगी अने प्रमाणभूत प्राचीन जैन ग्रन्थोनी 'सूचि' बनावी छे, तेमां पण ए विवरणनी एटले के एमनी 'उपदेशमालावत्तिनी नोंध लेवामां आवी छे, अने तेनी रचनासाल पण तेमां नोंधी छे. ते अनुसारे सं. ९१३मां एटले के प्रस्तुत धर्मोपदेशमालाविवरफी समाप्ति पूर्वे, बे वर्ष उपर, तेनी रचना करी हती. ए वृत्ति अद्यापि मारा जोवामां आवी नथी. संभव छे के जेम ग्रन्थकारे प्रस्तुत विवरणनी अन्ते लांबी प्रशस्ति लखीने पोतानां स्थान, समय गुरुकुल आदिनो योग्य परिचय आप्यो छे, तेम ए वृत्ति = विवरणमां पण आप्यो होय अने एमां ग्रन्थकार विषे कोई विशेष ऐतिहासिक ज्ञातव्य पण नोंधाएलुं होय. विद्वानोए ए वृत्तिनी शोध करवी जोईए अने उपलब्ध थाय तो तेने पण प्रकाशमां मूकवानी प्रवृत्ति करवी जोईए. ग्रंथकारे पोतानी जे एक अन्य विशिष्ट रचनानो पण उल्लेख, प्रस्तुत विवरणनी प्रशस्तिमां करेलो छे ते पूर्णरूपमां मारा जोवामां नथी आवी परंतु तेनो अल्प एवो त्रुटित भाग मारा जोवामां आव्यो छे. ए रचना ते नेमिनाहचरियं' छे . ग्रन्थकार कहे छे के-'ज्यां सुधी आ जगत्मा द्वीप, समुद्र, कुलपर्वत, चन्द्र, सूर्य अने स्वर्गना देवो विद्यमान रहे त्यां सुधी आ विवरण पण, नेमिचरितनी जेम प्रसार पामतुं रहो. (प्रशस्ति गाथा २७ पृ. ३०९) मने लागे छे के ग्रन्थकारनी रचनाओमां ए नेमिचरियं'कदाच सौथी मोटी अने महत्त्वनी कृति हशे. जेसलमेरना भंडारमां, ए ग्रन्थनी ताडपत्रनी प्रतिनां थोडांक त्रुटक पानां मारा जोवामां आव्यां जेमां एक पार्नु ग्रन्थना अन्तभागवाळु पण दृष्टि गोचर थो हतुं. ए पानामां ग्रंथनी अन्तप्रशस्तिनो केटलोक पाठ मने उपलब्ध थयो छे जे आ नीचेनी पंक्तिओमां आपवामां आवे छे. १. जुओ, पृष्ठ ११२, १२२, १३८, १५०, १७१, १७४, १७७ आदि उपर करेला उल्लेखो. २. जुओ, जैन साहित्य संशोधक, प्रथमभाग, द्वितीय अंक, सूचिपृष्ठ ६.. mala-t.pm5 2nd proof
SR No.009624
Book TitleDharmopadeshmala prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysinhsuri, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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