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________________ धर्मोपदेशमाला-प्रास्ताविक वक्तव्य जैन पूर्वाचार्योए प्राथमिक कक्षाना साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका-एम चतुर्विध जैन संघने नियमित भणवा-गुणवा माटे जे केटलाक सामान्य उपदेशात्मक प्रकरण ग्रन्थोनी रचना करी छे तेमांनो प्रस्तुत धर्मोपदेशमाला' प्रकरण पण एक प्रमुख ग्रन्थ छे. ए प्रकारनां प्रकरणोमां सौथी मुख्य अने सौथी प्राचीन प्रकरण ग्रन्थ तेधर्मदास गणीनो बनावेलो 'उपदेशमाला' नामनो छे जेनी मूळ ५४१ प्राकृत गाथाओ छे. बहु ज प्राचीन समयथी लईने वर्तमान समय सुधीमां, ए प्रकरण, पठन-गुणन जैन श्रद्धालु वर्गमां व्यापकरूपे थतुं आव्युं छे. श्वेताम्बर संघना सर्व प्राचीन संप्रदायोमा ए प्रकरण ग्रन्थनी विशिष्ट प्रकारनी प्रतिष्ठा मनाती आवी छे अने आगमिक ग्रन्थोना जेटली ज श्रद्धाथी एनो स्वाध्याय करवानो प्रचार चाल्यो आव्यो छे. ए ग्रन्थना कर्ता धर्मदास गणी क्यारे थया तेनो चोक्कस निर्णय करवा माटेनां पुरतां प्रमाणो हजी ज्ञात नथी थयां. ए ग्रन्थना केटलाक व्याख्याकारोए तो, तेमने खास भगवान् महावीर स्वामिना ज एक हस्त-दीक्षित शिष्य तरीके उल्लेख्या छे अने ए रीते ए प्रकरणनी रचना महावीर स्वामीना समयमां ज थएली होवानी मान्यता प्रकट करी छे, परंतु ऐतिहासिक दृष्टिए तेम ज प्राकृत भाषाना स्वरूपना तुलनात्मक अवलोकन विगेरेनी दृष्टिए, ए ग्रन्थ तेटलो प्राचीन तो सिद्ध नथी थतो. कारण के एमां भगवान् महावीरना निर्वाण बाद केटलाय सैका पछी थएला आर्य वज्र आदि आचार्योनो पण प्रकटरूपे उल्लेख थएलो मळे छे. तेथी इतिहासज्ञोनी दृष्टिए ए ग्रन्थ, विक्रमना ४ था-५ मा शतक दरम्यान के तेथी य पछीना एकाद सैकामां रचाएलो सिद्ध थाय छे. ए समय गमे ते होय, परंतु भूतकाळना १२००-१४०० जेटला वर्षोथी तो निश्चित रूपे धर्मदासगणीनी ए कृति श्वेतांबर संघमां बहुमान्य थएली छे, एटली वस्तु सुस्पष्ट छे. ए'उपदेशमालामा सामान्य प्रकारे सर्वकक्षाना जैन संघने जीवनमा आचरवा अने अनुसरवा योग्य ज्ञान, ध्यान, तप, संयम, क्षमा, दया, विनय, विवेक, अनुकंपा, अपरिग्रह, निर्ममता, निर्लोभता, अप्रमाद अने अनासक्ति-इत्यादि इत्यादि विविध प्रकारना आत्मविशुद्धि
SR No.009624
Book TitleDharmopadeshmala prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysinhsuri, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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