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दर्पण दर्शन तथा पंखे डुलाने की विधि
• एल्युमिनियम, तुच्छ कागज के गत्ते अथवा लोहे के स्क्रू-नट तथा प्लास्टिक से मढे हुए दर्पण नहीं रखना चाहिए। सोना-चांदी अथवा पीतल के गत्ते तथा नक्काशीदार दर्पण रखना चाहिए। प्रभुजी के मुखदर्शन के लिए उपयोगी दर्पण में कभी भी अपना मुख नहीं देखना चाहिए ।
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दर्पण व पंखा पूजा
यदि भूल से देख लिया हो तो उस दर्पण का त्याग कर देना चाहिए। • यदि सम्भव हो तो मंदिर तथा स्वद्रव्यवाले दर्पण पर योग्य कवर ढंककर रखें।
• सुयोग्य दर्पण को अपने हृदय के नजदीक पीछे का भाग रखकर आगे के भाग से प्रभुजी का दर्शन करना चाहिए ।
• प्रभुजी के दर्शन होने के साथ ही उचित रूप से चारों ओर सरलता से घूम सके, ऐसा पंखा झलना चाहिए ।
सेवक के हृदयकमल में प्रभुजी का वास है तथा प्रभुजी की करुणापूर्ण दृष्टि की सेवक तरसता है, इस आशय से प्रभुजी को दर्पण में अपने हृदय के पास दर्शन करें तथा तुरन्त सेवक बनकर पंखा झुलना चाहिए ।
• दर्पण तथा पंखे का उपयोग करने के बाद दर्पण को उलटकर रख देना चाहिए तथा पंखे को उचित स्थान पर लटका देना चाहिए । • दर्पण - दर्शन तथा पंखा झुलते समय बोलने योग्य भाववाही स्तुतियाँ : प्रभु- -दर्शन करवा भणी, दर्पण-पूजा विशाल । आत्मदर्शनथी जुए दर्शन होय तत्काल ॥ १ ॥
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