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आरती जय जय आरती, आदि जिणंदा;
नाभिराया मरूदेवी को नंदा....१ पहेली आरती, पूजा कीजे; नरभव पामीने लाहो लीजे। दूसरी आरती दीन दयाळा,
धूळेवा मंडपमांजग अजुवाळा ॥ तीसरी आरती त्रिभुवनदेवा,
सुरनर किन्नर करे तोरी सेवा; चोथी आरती, चउगति चूरे,
मनवांछित फल शिव सुख पूरे॥ पांचमी आरती पुण्य उपाया,
मूलचंद्रे ऋषभ गुण गाया॥
मंगल-दीवो दीवो रे प्रभु मंगलिक दीवो,
आरती उतारण, बहु चिरंजीवो, सोहामणो घेर, पर्व दिवाली
अंबर खेले, अमरा बाली, दिपाल भणे, एणे कुल अजुवाले
आरती उतारी राजा कुमारपाले अम घेर मंगलिक, तुम घेर मंगलिक,
मंगलिक चतुर्विध, संघ ने होजो.....
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