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को अँगूठे से मस्तक के ऊपर तिलक करने के बाद उस केशर से किसी की भी पूजा नहीं करनी चाहिए ।
शासनरक्षक देव-देवी की पूजा 'धर्मश्रद्धा में सहायक बने तथा किसी भी प्रकार के विघ्न में भी श्रद्धा अडिग बनी रहे ' ऐसा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ही पूजा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त अन्य आशय से नही ।
• प्रवचन मुद्रा में अथवा गुरु अवस्था में स्थित चरम भवी श्री को गणधर भगवंतो की प्रभुजी के समक्ष वंदना कर सकते है। • प्रभुजी के नव अंगों में क्रमशः पूजा करने से पहले उन उन अंगों के दोहे मन में दुहराकर उसके बाद उन अंगों की पूजा करनी चाहिए ।
(१) दो अँगूठें की पूजा :
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जल भरी संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण अँगूठडे, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ (२) दो घुटनों की पूजा :
जानुबले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश । खडा-खडा केवल लह्युं, पूजो जानु नरेश ॥ २ ॥ (३) दो हाथों की पूजा :
लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भव बहुमान ॥ ३ ॥
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