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(४) दो कन्धों की पूजा :--
मान गयुं दोय अंशथी , देखी वीर्य अनंत।
भुजा बले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ॥४॥ (५) शिरशिखा मस्तक की पूजा :
सिद्धशिला गुण ऊजली,लोकांते भगवंत। वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत ॥५॥ ललाटकी पूजा :तीर्थंकरपद पुण्यथी, त्रिभुवन जनसेवंत।
त्रिभुवन तिलकसमाप्रभु,भाल तिलकजयवंत॥६॥ (७) कंठकी पूजा :
सोल पहोरप्रभु देशना, कंठेविवर वर्तुल। मधुरध्वनि सुरनरसुने,तेणेगले तिलक अमूल ॥७॥ हृदय की पूजा :हृदय कमल उपशम बले,बाल्या राग ने रोष।
हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष ॥८॥ (९) नाभि की पूजा :
रत्नत्रयी गुण ऊजली, सकल सुगुण विश्राम।
नाभिकमल नी पूजना, करतांअविचल धाम॥९॥ (१०) दोनों हाथ जोड़करगाने योग्य नव-अंग पूजा का उपसंहार:
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