________________
घण्टनाद
इस तरह प्रभुजी से पीछे मुडते समय चलना चाहिए।
करना चाहिए। घंटनाद के बाद बिना पलक झपकाए अनिमेष दृष्टि से प्रभु की नि:स्पृह करुणादृष्टि का अमीपान करते करते अत्यन्त दुःखपूर्वक प्रभु का सान्निध्य छोड़कर पाप से भरे संसार में वापस जाना पड़ रहा हो, इस प्रकार खेद प्रगट करते हुए पीछे पैर रखते हुए प्रवेशद्वार की ओर जाना चाहिए। मौन-धारण, जयणापालन, दुःखार्त हृदय आदि का सहजता से अनुभव करते हुए आराधक के नेत्र अश्रुपूर्ण हो जाएँ, यह भी
सम्भव है। (105)