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न्हवण जल लगाने की विधि
मंदिर में प्रवेशद्वार के पास किसी भी दिशा से प्रभु की दृष्टि न पड़े, ऐसी जगह पर स्वच्छ कटोरे में ढक्कन के साथ न्हवण जल रखना चाहिए। अपने शरीर को न्हवण जल का स्पर्श कराने के कारण, उस समय प्रभुजी की दृष्टि पड़े, तो अनादर होता है। साधन छोटा हो तो उस
साधन के नीचे भी एक पांचो अंगो में न्वहण जल लगाए। थाली रखनी चाहिए।
न्हवणजल को अनामिका ऊँगली से स्पर्श कर क्रमश: प्रत्येक अंग पर लगाना चाहिए। प्रभुजी के अंग को स्पर्श कर परम पवित्र हुआ न्हवण जल
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