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तुम पद सेवा भक्ति मां, नवि राखुं खामी, साची भक्ते साहिबा, रीझो एक वेळा ॥ श्री शुभवीर हुवे सदा, मनवांछित मेला " • वधाते हुए दोहे बोले
तीरथ पद ध्यावो गुण गावो, पंचरंगी रयण मिलावो रे ॥ थाल भरी भरी मोतीडे वधावो, गुण अनंत दिल लावो रे ॥ भलुं थयुं ने अमे प्रभु गुण गाया, रसना नो रस पीधो रे ॥ रावण राये नाटक कीधो, अष्टापद गिरि उपर रे ॥ थैया थैया नाटक करतां, तीर्थंकर पद लीधुं रे ॥ मंदिर के बाहर निकलते समय की विधि • प्रभुजी के सम्मुख दृष्टि रखकर हृदय में प्रभु का वास कराते हुए, प्रभुजी को अपनी पीठ नहीं दिखाई पड़े, इस प्रकार आगे-पीछे तथा दोनों ओर भली-भांति ध्यान रखते हुए पूजा की सामग्री के साथ पीछे की ओर चलते हुए प्रवेश द्वार के पास स्थित मनोहर घंट के पास आना चाहिए।
• प्रभुजी की भक्ति करने से उत्पन्न असीम आंतरिक आनन्द तथा शान्ति के अनुभव को प्रगट करने के लिए अन्य आराधको को अंतराय न हो, इस प्रकार तीन बार घंटनाद
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