________________
वाणी, व्यवहार में...
को डंडा नहीं मार सकते पर ताना मारते हैं। ताना आपने देखा है न? ताना मारते हैं ! तब मैंने कहा, 'वह ताना मारे तो आप क्या करती हो?' तब वे बहन कहती हैं, 'मैं कहती हूँ कि आप और मैं कर्म के उदय से दोनों मिले हैं, कर्म के उदय से विवाह हुआ। आपके कर्म आपको भोगने हैं। और मेरे कर्म मुझे भोगने हैं।' मैंने कहा, 'धन्य है बहन तुझे !' हमारे हिन्दुस्तान में ऐसी आर्य स्त्रियाँ अभी भी हैं। वे सती कहलाती है।
ये सब मिले किसलिए हैं? हमें पसंद नहीं हो तो भी साथ में किसलिए पड़े रहना पड़ता है? वह कर्म करवाता है। पुरुष को नापसंद हो तो भी कहाँ जाए? पर उसे मन में समझ जाना चाहिए कि, 'मेरे कर्म के उदय हैं।' ऐसा मानकर शांति रखनी चाहिए। वाइफ का दोष नहीं निकालना चाहिए। क्या करना है दोष निकालकर ? दोष निकालकर कोई सुखी हुआ है? कोई सुखी होता है क्या?
और मन शोर मचाता है, 'कितना सारा बोल गई, क्या से क्या हो गया।' तब कहें, 'सो जा न, अभी घाव भर जाएगा' कहें। घाव भर जाता है तुरन्त... है न, उसके कंधे थपथपाएँ तो सो जाता है।
प्रश्नकर्ता: वाणी का अपव्यय और दुर्व्यय समझाइए ।
दादाश्री : अपव्यय मतलब वाणी का उल्टा उपयोग करना और दुर्व्यय मतलब व्यय नहीं करने जैसी जगह पर व्यय करना । बिना काम के भौंकता रहे, वह दुर्व्यय कहलाता है। आपने देखा है? बिना काम के भौंकते हैं वैसे होते हैं न? वह दुव्यर्य कहलाता है।
जहाँ जो वाणी होनी चाहिए वहाँ दूसरी ही वाणी बोलनी, वह अपव्यय कहलाता है। जो जहाँ फिट होता हो, वह ज्ञान नहीं बोलना और दूसरी प्रकार से बोलना, वह अपव्यय है।
झूठ बोले, प्रपंच करे, वह सारा वाणी का अपव्यय कहलाता है। वाणी के दुर्व्यय और अपव्यय में बहुत फर्क है। अपव्यय मतलब सभी प्रकार से नालायक, सभी प्रकार से दुरुपयोग करता है। वकील दो रुपये
६
वाणी, व्यवहार में...
के लिए झूठ बोलते हैं कि 'हाँ, इसे मैं पहचानता हूँ।' वह अपव्यय कहलाता
है।
आज तो लोग आपकी टीका भी करते हैं। खुद क्या कर रहा है, उसका भान नहीं है बेचारे को, इसलिए ऐसा करता रहता है। दुःखवाला ही किसीकी टीका करता है, दुःखवाला किसीको छेड़ता है। सुखी मनुष्य किसीकी टीका नहीं करता।
'अपनी टीका करने का लोगों को अधिकार है। हमें किसीकी टीका करने का अधिकार नहीं है।' (आप्तसूत्र) तो निंदा और टीका में फर्क है ?
टीका मतलब क्या कि उसके प्रत्यक्ष दिखनेवाले दोष, उन्हें ओपन करना, वह टीका कहलाती है। और निंदा मतलब दिखनेवाले नहीं दिखनेवाले सारे दोष गाते रहना। उसका उल्टा ही बोलते रहना, वह निंदा है।
'किसीकी थोड़ी भी टीका करना केवलज्ञान को बाधक है। अरे, आत्मज्ञान को भी बाधक है, समकित को भी बाधक है।' (आप्तसूत्र)
प्रश्नकर्ता: किसीकी निंदा करें, वह किसमें आ जाता है?
दादाश्री : निंदा, वह विराधना मानी जाती है। पर प्रतिक्रमण करें तो चला जाता है। वह अवर्णवाद जैसा है। इसलिए तो हम कहते हैं कि किसीकी निंदा मत करना। तो भी लोग पीछे से निंदा करते हैं ।
इसलिए किसीकी निंदा में नहीं पड़ना चाहिए। कमाई नहीं करें, कीर्तन नहीं करें तो हर्ज नहीं, पर निंदा में मत पड़ना। मैं कहता हूँ कि निंदा करने में अपना क्या फायदा है? उसमें तो बहुत नुकसान है। जबरदस्त नुकसान यदि कभी इस जगत् में हो तो निंदा करने में है।
किसी व्यक्ति की निंदा नहीं कर सकते। अरे, थोड़ी बातचीत भी नहीं कर सकते। उसमें से भयंकर दोष बैठ जाते हैं। उसमें भी यहाँ सत्संग में, परमहंस की सभा में तो किसीकी थोड़ी सी भी उल्टी बातचीत नहीं