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वाणी, व्यवहार में... भी अपने लोग तो छोड़ते नहीं हैं। ऐसा करते हैं या नहीं करते लोग? ऐसा नहीं होना चाहिए, हम ऐसा कहना चाहते हैं। जोखिम है उसमें। बहुत बड़ा जोखिम है।
वाणी, व्यवहार में... कर सकते। एक थोड़ी सी उल्टी कल्पना से ज्ञान के ऊपर कितना बड़ा आवरण आ जाता है। तो फिर इन 'महात्माओं' की टीका, निंदा करें तो कितना भारी आवरण आएगा। सत्संग में तो दूध में शक्कर मिल जाती है, वैसे मिल जाना चाहिए। यह बुद्धि ही भीतर दख़ल करती है। हम सभी का सबकुछ जानते हैं, फिर भी किसीका एक अक्षर भी नहीं बोलते। एक अक्षर भी उल्टा बोलने से ज्ञान के ऊपर आवरण आ जाता है।
प्रश्नकर्ता : जो अवर्णवाद शब्द है न, उसका एक्जेक्ट मीनिंग क्या
है?
दादाश्री : किसी भी रास्ते जैसा है वैसा चित्रण नहीं करना, पर उल्टा ही चित्रण करना, वह अवर्णवाद! जैसा है वैसा भी नहीं और वापिस उससे उल्टा। जैसा है वैसा चित्रण करें और खराब को खराब बोलें और अच्छे को अच्छा बोलें, तो अवर्णवाद नहीं कहलाता। पर सारा ही उल्टा बोलें तब अवर्णवाद कहलाता है।
अवर्णवाद मतलब किसी व्यक्ति की बाहर अच्छी इज्जत हो, रुतबा हो, कीर्ति हो, तो उसे हम उल्टा बोलकर तोड़ डालें, वह अवर्णवाद कहलाता है। यह अवर्णवाद तो निंदा से भी ज्यादा खराब चीज़ है। अवर्णवाद मतलब उसके लिए गाढ़ निंदाएँ करना। ये लोग निंदा कैसी करते हैं? सादी निंदा करते हैं। पर गाढ़ निंदा करना वह अवर्णवाद कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : 'हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसीका किंचित मात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय नहीं किया जाए, नहीं करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदन नहीं किया जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।' (नौ कलमों में से आठवीं कलम)
दादाश्री : अपने कोई रिश्तेदार मर गए हों और उसकी लोग निंदा कर रहे हों, तो हमें बीच में नहीं पड़ना चाहिए। बीच में पड़ जाएँ, तो हमें फिर पछतावा करना चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी मरे हुए व्यक्ति की बात करनी, वह भयंकर गुनाह है। जो मर गया हो, उसे
अभी रावण का उल्टा नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि अभी तो वह देहधारी है। इसलिए उन्हें 'फोन' पहुँच जाता है। रावण ऐसा था और वैसा था' बोलें, वह उसे पहुँच जाता है।
उस समय पहले के ओपीनियन से ऐसा बोल लिया जाता है। इसलिए यह कलम बोलते जाओ तो वैसी बात बोल ली जाए तो दोष नहीं लगे।
एक शब्द कड़वा नहीं बोल सकते। कडवा बोलने से तो बहत सारे झगड़े खड़े हुए हैं। एक ही शब्द 'अँधे के सब अँधे' इस शब्द से तो पूरा महाभारत खड़ा हो गया। दूसरा तो कोई खास कारण नहीं था, यही मुख्य कारण था ! द्रौपदी ने कहा था न? टकोर की थी न? अब उसका फल द्रौपदी को मिला। हमेशा एक भी कडवा शब्द बोला हो तो फल मिले बगैर रहेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : वाणी में से कठोरता किस प्रकार जाए?
दादाश्री : वह तो हम वाणी को जैसे मोड़ना चाहें वैसी मुड़ जाती है। पर अभी तक हमने कठोर बनाई थी। लोगों को डराने के लिए, घबराने के लिए।
सामनेवाला कठोर बोले तो हमें मृदु बोलना चाहिए। क्योंकि हमें छूटना है।
___ हे दादा, कंठ में बिराजमान हो जाइए। तब वाणी सुधर जाएगी। यहाँ गले में दादा का निदिध्यासन करें तो भी वाणी सुधर जाएगी।
प्रश्नकर्ता : तंतीली भाषा मतलब क्या? दादाश्री : रात को आपकी वाइफ के साथ झंझट हो जाए न, तो