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________________ वाणी, व्यवहार में.. कि किसी दिन चिढ़ेगा तब अपना हिसाब पूरा हो जाएगा, हम मौन रखें तो किसी दिन वह चिढ़ेगा और खुद ही बोलेगा कि, 'आप बोलते नहीं हो, कितने दिनों से चुपचाप फिरते हो!' ऐसा चिढ़े, मतलब अपना हिसाब पूरा हो गया। तब क्या हो फिर? यह तो तरह-तरह के लोहे होते हैं, हमें सब पहचान में आते हैं। कितनों को बहुत गरम करें तो मुड़ जाते हैं। कितनों को भट्ठी में डालने पड़ते हैं, फिर जल्दी से दो हथौड़े मारें कि सीधा हो जाता है। ये तो तरह-तरह के लोहे हैं! इसमें आत्मा वह आत्मा है, परमात्मा है और लोहा वह लोहा है, ये सारी दूसरी धातुएँ हैं। आप एक दिन तो कहकर देखो कि "देवी', आज तो आपने बहुत अच्छा भोजन खिलाया', इतना बोलकर तो देखो। प्रश्नकर्ता : खुश, खुश! दादाश्री : खुश-खुश हो जाएगी। पर यह तो बोलते भी नहीं। वाणी में भी मानो कि मुफ्त की खरीदकर लानी पड़ती हो न, ऐसे। वाणी खरीदकर लानी पड़ती है? प्रश्नकर्ता : नहीं, पर पतिपन वहाँ चला जाएगा न! दादाश्री : पतिपन चला जाएगा, पतिपन!! ओहोहो! बड़ा पति बन बैठा!! और अन्सर्टिफाइड पति वापिस, यदि सर्टिफिकेट लेकर आया होता तो ठीक है!! पत्नी और उसका पति, दोनों पडोसी के साथ लडते हैं. तब कैसे अभेद होकर लड़ते हैं? दोनों एक साथ ऐसे हाथ करके कि, 'आप ऐसे और आप वैसे।' दोनों जने ऐसे हाथ करते हैं। तब हमें लगता है कि ओहोहो! इन दोनों में इतनी अधिक एकता!! यह कोर्पोरेशन अभेद है, ऐसा हमें लगता है। और फिर घर में घुसकर दोनों लड़ते हैं तब क्या कहेंगे? घर पर वे लोग लड़ते हैं या नहीं लड़ते? कभी तो लड़ते हैं न? वह कोर्पोरेशन अंदर-अंदर जब झगड़ता है न, 'तू ऐसी और आप ऐसे, तू ऐसी और आप वैसे।' ....फिर घर में जमता है न, तब कहता है, 'तू चली जा, वाणी, व्यवहार में... यहाँ से घर चली जा, मुझे चाहिए ही नहीं' कहेगा। अब यह नासमझी नहीं है? आपको कैसा लगता है? वे अभेद थे और ट गया और भेद उत्पन्न हुआ। इसलिए वाइफ के साथ भी 'मेरी-तेरी' हो जाता है। 'तू ऐसी है और तू ऐसी है!' तब वह कहेगी, 'आप कहाँ सीधे हो?' इसलिए घर में भी 'मैं और तू' हो जाता है। फ़ैमिलि के व्यक्ति से ऐसे हाथ टकरा जाए तो हम उसके साथ लड़ते हैं? नहीं। एक फ़ैमिलि की तरह रहना चाहिए। बनावट नहीं करनी चाहिए। यह तो, लोग बनावट करते हैं, वैसा नहीं। एक फ़ैमिलि... तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता ऐसे कहना चाहिए, वह डाँटे न हमें, उसके बाद थोड़ी देर बाद फिर कह देना, 'तू चाहे जितना डाँटे, तो भी तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता।' ऐसे कह देना चाहिए। इतना गुरुमंत्र कह देना चाहिए। ऐसा कभी बोलते ही नहीं, आपको बोलने में हर्ज क्या है? मन में प्रेम रखते ज़रूर हैं, पर थोड़ा प्रकट करना चाहिए। यानी, हमारा सब ड्रामा ही होता है। हीराबा ७३ वर्ष के, फिर भी मझे कहते हैं, 'आप जल्दी आना। मैंने कहा. 'मझे भी आपके बिना अच्छा नहीं लगता!' ऐसा ड्रामा करें तो कितना उन्हें आनंद हो जाए। जल्दी आना, जल्दी आना कहती हैं। तो उन्हें भाव है इसलिए वे कहती हैं न! तब हम भी वैसा बोलते हैं। बोलना हितकारी होना चाहिए। बोला हुआ बोल यदि सामनेवाले को हितकारी नहीं हुआ तो हमारा बोला हुआ बोल काम का ही क्या है फिर?! ___ एक घंटा नौकर को, बेटे को या पत्नी को डाँटा हो तो फिर वह पति होकर या सास होकर आपको पूरी ज़िन्दगी कुचलते रहेंगे! न्याय तो चाहिए या नहीं चाहिए? यही भुगतना कहलाता है। आप किसीको दुःख दोगे तो आपके लिए पूरी ज़िन्दगी का दु:ख आएगा। एक ही घंटा दुःख दोगे तो उसका फल पूरी ज़िन्दगी मिलेगा। फिर चिल्लाओ कि 'पत्नी मुझे ऐसा क्यों करती है?' पत्नी को ऐसा होता है कि, 'इस पति के साथ मुझसे ऐसा क्यों हो जाता है?' उसे भी दु:ख होता है, पर क्या हो? फिर मैंने उन्हें पूछा कि, 'पत्नी आपको ढूंढकर लाई थी या आप पत्नी को ढूंढकर
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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