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वाणी, व्यवहार में...
दादाश्री : उसे दुःख होता हो तो हमें प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। हमें उसमें क्या मेहनत लगनेवाली है? किसीको द:खी करके हम सखी नहीं हो सकते।
वाणी, व्यवहार में... अच्छा, ऐसा नहीं हो तो अच्छा।' हम ऐसा कह सकते हैं। पर हम उसके बॉस (ऊपरी) हों, उस तरह से बात करते हैं न, इसलिए बुरा लगता है। खराब शब्द हों, वे विनय के साथ कहने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कोई गलत कर रहा हो, उसे टोकना पड़ता है। तो वह करना चाहिए या नहीं?
दादाश्री : व्यवहार में टोकना पड़ता है, पर वह अहंकार सहित होता है। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : टोके नहीं तो वह सिर पर चढ़ेगा?
दादाश्री : टोकना तो पड़ता है, पर कहना आना चाहिए। कहना नहीं आता, व्यवहार नहीं आता, इसलिए अहंकार सहित टोकते हैं। इसलिए बाद में उसका प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। आप सामनेवाले को टोको, तब सामनेवाले को बुरा तो लगेगा, पर उसका प्रतिक्रमण करते रहोगे तो छह महीने में, बारह महीने में वाणी ऐसी निकलेगी कि सामनेवाले को मीठी लगेगी।
प्रश्नकर्ता : हमें कितनी ही बार सामनेवाले के हित के लिए उसे टोकना पड़ता है, रोकना पड़ता है। तो उस समय उसे दुःख पहुँचे तो?
दादाश्री : हाँ, कहने का अधिकार है, पर कहना आना चाहिए। यह तो भाई आया कि उसे देखते ही कहेंगे कि, 'तू ऐसा है और तू वैसा है।' तब वहाँ अतिक्रमण हुआ कहलाएगा। सामनेवाले को दःख हो जाए वैसा हो, तो हमें कहना चाहिए, 'हे चंदूभाई प्रतिक्रमण करो। अतिक्रमण क्यों किया? फिर ऐसा नहीं बोलूंगा और यह बोला उसका पश्चाताप करता हूँ।' इतना ही प्रतिक्रमण करना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : पर वे गलत बोलते हों या गलत करते हों तो भी हमें नहीं बोलना चाहिए?
दादाश्री : बोलना चाहिए। ऐसा कह सकते हैं, 'ऐसा नहीं हो तो
प्रश्नकर्ता : बुरा शब्द बोलते समय विनय रह सकता है?
दादाश्री : वह रह सकता है, वही विज्ञान कहलाता है। क्योंकि 'ड्रामेटिक' (नाटकीय) है न! होता है लक्ष्मीचंद और कहता है, 'मैं भर्तृहरि राजा हूँ, इस रानी का पति हूँ, फिर भिक्षा दे दे मैया पिंगला।' कहकर आँखों में से पानी टपकाता है। तब, 'अरे, तू तो लक्ष्मीचंद है न? तू सचमुच रोता है?' तब कहेगा, 'मैं क्यों सचमुच रोऊँ? यह तो मुझे अभिनय करना ही पड़ेगा, नहीं तो मेरी तनख्वाह काट लेंगे।' उस तरह से अभिनय करना है। ज्ञान मिलने के बाद यह तो नाटक है।
प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने हों, वे मन से करने हैं या पढ़कर अथवा बोलकर?
दादाश्री : नहीं। मन से ही। मन से करें, बोलकर करें, चाहे जिस तरह कि मेरा उसके प्रति जो दोष हुआ है, उसकी क्षमा माँगता हूँ। वह मन में बोलें तो भी चलेगा। मानसिक अटेक हुआ, इसलिए उसके प्रतिक्रमण करने हैं बस।
प्रश्नकर्ता : एक खराब मौका आया हो, सामनेवाला व्यक्ति आपके लिए खराब बोल रहा हो या कर रहा हो, तो उसके रिएक्शन से हमें अंदर जो गुस्सा आता है, वह जीभ से शब्द निकलवा देता है, पर मन अंदर से कहता है कि, यह गलत है। तो बोल देता है उसका दोष अधिक है या मन से करे हुए के दोष अधिक हैं?
दादाश्री : जीभ से करें न, वह झगड़ा अभी के अभी हिसाब चुकाकर चला जाएगा और मन से किया हुआ झगड़ा आगे बढ़ेगा। जीभ से करें न, वह तो हम सामनेवाले से कहें, तो वह वापिस लौटा देता है। तुरन्त उसका फल मिल जाता है। और मन से करे तो उसका फल तो