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त्रिमंत्र
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त्रिमंत्र
बात को समझे नहीं और कैसे-कैसे दुराग्रह लेकर बोलते हैं। यह त्रिमंत्र है, उसे कैसा भी पागल आदमी बोलेगा तो इसका फल पायेगा। फिर भी उसका अर्थ निकाल कर पढ़ें तो अच्छा है।
यह नवकार मंत्र भी भगवान के समय से है और बिलकुल सही है, मगर नवकार मंत्र समझ में आये तब न? उसका अर्थ समझें नहीं
और गाते रहते हैं। इसलिए उसका जैसा लाभ मिलना चाहिए वैसा नहीं मिलता। पर फिर भी फिसल नहीं पड़े, उतना अच्छा है। वर्ना नवकार मंत्र तो वह कहलाये कि नवकार मंत्र के होते चिंता क्यों हो? पर अब बेचारा नवकार मंत्र क्या करे, जब आराधक ही टेढा हो!
कहावत है न कि 'माला बेचारी क्या करे, जपनेवाला कपूत?' ऐसा कहते हैं न?
ज़रा पूछ आइए कि, ये सभी मंत्र बोलते हैं, उनमें से कितने उपयोगपूर्वक बोलते हैं? माला फेरते हैं, तब कितने उपयोगपूर्वक माला फेरते हैं? तब फिर जलदी निपटाने के लिए माला के मनको की गिनती में घोटाला करते थे। यह लोगों की नजर में आ जाता था, इसलिए उससे बचने के लिए गौमुखियाँ बनाई। खुले आम तो गोटाला नहीं कर सकते हैं न?
__ भगवान ने क्या कहा है कि, 'तू जो-जो करेगा, माला फिरायेगा, नवकार मंत्र बोलेगा, वह उपयोगपूर्वक करेगा तो उसका फल प्राप्त होगा। वर्ना नासमझी से करने पर तो 'काँच' लेकर ही घर जायेगा और असली हीरा तेरे हाथ नहीं लगेगा। उपयोगवाले को हीरा और उपयोग नहीं उसे काँच। और आज उपयोगवाले कितने हैं, इसकी ज़रा तलाश कर लेना।
द्रव्यपूजा और भावपूजावालों के लिए ये साधु-आचार्य पूछते हैं कि, यह नवकार मंत्र और अन्य मंत्र
साथ में बोलने की वजह क्या है? अकेला नवकार बोलने में क्या हर्ज है? मैंने कहा, 'जैन यह अकेला नवकार मंत्र नहीं बोल सकते। अकेला नवकार मंत्र कौन बोल सकता है? जो त्यागी है, जिसे संसार से कुछ लेना-देना नहीं है, लड़कियाँ ब्याहनी नहीं हैं, लड़के नहीं ब्याहने हैं, वे नवकार अकेला बोल सकते हैं।'
लोग दो हेतु से मंत्र बोलते हैं। जो भावपूजावाले हैं वे ऊपर चढ़ने के लिए बोलते हैं और दूसरे इस संसार की जो अड़चनें हैं उन्हें कम करने के लिए बोलते हैं। अर्थात् जो सांसारिक अड़चनोंवाले हैं उन सभी को देवलोगों की कृपा चाहिए। इसलिए जो अकेली भावपूजा करते हों, द्रव्यपूजा नहीं करते हों, वे यह एक ही मंत्र बोल सकते हैं। और जो द्रव्यपूजा और भावपूजा दोनों ही करते हों, उन्हें सारे मंत्र साथ बोलना चाहिए।
मूर्ति के भगवान द्रव्य भगवान हैं, द्रव्य महावीर हैं और यह भीतर भाव महावीर हैं। उनको तो हम भी नमस्कार करते हैं।
___ मन को तर करे मंत्र जहाँ तक मन है वहाँ तक मंत्र की जरूरत है और मन अंत तक रहनेवाला है। शरीर है वहाँ तक मन है। मंत्र इटसेल्फ (स्वयं) कहता है कि मन को तर करना हो तो मंत्र बोलें। मन को खुश करने के लिए यह सुंदर रास्ता है।
अर्थात् उसकी व्यवस्था ही ऐसी पद्धति अनुसार है कि आप मंत्र बोलें तो उसका फल प्राप्त हुए बिना नहीं रहता।
त्रिमंत्र की भजना कहीं भी प्रश्नकर्ता : त्रिमंत्र मानसिक तौर पर किसी भी समय और किसी भी जगह किया जा सकता है या नहीं?
दादाश्री : अवश्य। किसी भी समय किया जा सकता है। त्रिमंत्र