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________________ त्रिमंत्र तो संडास में भी बोल सकते हैं। पर ऐसा कहने का लोग दुरुपयोग करते हैं और फिर वे संडास में ही करते रहते हैं। ऐसा नहीं समझते कि किसी दिन अड़चन होने पर, समय नहीं मिला तब संडास में करें वह बात अलग है। यानी हमारे लोग उस बात को उलटा पकड़ लेते हैं। इसलिए हमारे लोगों के लिए मर्यादा बाँधनी पड़ती है। फिर भी हम कोई मर्यादा नहीं बाँधते हैं। ४३ नवकार मंत्र के सर्जक कौन ? प्रश्नकर्ता: नवकार मंत्र का सर्जक कौन है? दादाश्री : यह तो कुछ आज का प्रोजेक्ट नहीं है। यह तो पहले से ही है, पर अन्य रूप में था । अन्य रूप में यानी भाषा का परिवर्तन होता है पर अर्थ वही का वही चला आ रहा है। त्रिमंत्र में कोई मोनिटर नहीं प्रश्नकर्ता: इन सभी मंत्रों में कोई अगुआ, मोनिटर तो होगा न? दादाश्री : कोई मोनिटर नहीं होता। मंत्रों में मोनिटर नहीं होते । मोनिटर तो लोग अपना-अपना आगे करते हैं कि यह 'मेरा मोनिटर' । प्रश्नकर्ता: पर मैं सबसे कहूँ कि 'आप मेरा कार्य करें, फिर दूसरे से कहूँ कि 'आप मेरा काम कीजिए' तो मेरा काम कौन करेगा? दादाश्री : जहाँ निष्पक्ष स्वभाव होगा वहाँ सभी काम करने के लिए तैयार होते हैं, सभी के सभी ! एक पक्ष का हुआ कि दूसरे तुरंत विरोधी हो जाते हैं। पर निष्पक्ष होने पर सभी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि वह बहुत नोबल होता है। यह हम हमारी संकुचितता की वज़ह से उसे संकुचित बनाते हैं । अर्थात् निष्पक्षता से सारा काम हो। हमारे यहाँ कभी हरकत नहीं आई। हमारे यहाँ चालीस हजार लोग यह त्रिमंत्र बोलते हैं, किसी को कोई हरकत नहीं आई। ज़रा सी भी हरकत नहीं आती। ४४ त्रिमंत्र काम करे ऐसी दवा यह प्रश्नकर्ता : तीनों मंत्र साथ बोलें तो अच्छा है । वह धर्म के समभाव और सद्भाव के लिए अच्छी बात है। दादाश्री : उसमें काम करे ऐसी दवाई निहित होती है। जिन्हें लड़कियाँ ब्याहनी हैं, लड़के ब्याहने हैं, सांसारिक जिम्मेवारी, फर्ज अदा करने हैं, उन्हें सभी मंत्र बोलने पड़ेंगे। सभी निष्पक्ष मंत्र बोलना। आप किसी पक्ष में क्यों पड़ते हैं? यह नवकार मंत्र किसी की मालिकी भाववाला है क्या? यह तो जो नवकार मंत्र भजेगा उसी का है। जो मनुष्य पुनर्जन्म समझने लगा है उसके लिए काम का है। जो पुनर्जन्म नहीं समझते हैं ऐसे लोगों के लिए यह किसी काम का नहीं है। हिन्दुस्तान के लोगों के लिए यह बात काम की है। 1 सभी मंत्र क्रमिक में हैं प्रश्नकर्ता : जो नवकार मंत्र है वह क्रमिक का मंत्र है न? दादाश्री : हाँ, सभी क्रमिक हैं। प्रश्नकर्ता: तो फिर यहाँ अक्रम मार्ग में उसे क्यों अधिक स्थान दिया गया है ? दादाश्री : उसका स्थान तो व्यावहारिक रूप में है। अभी आप व्यवहार में जीते हैं न? और व्यवहार शुद्ध करना है न? इसलिए यह मंत्र आपको व्यवहार में अड़चन नहीं आने देगा। यदि आपको व्यावहारिक अड़चने आती हों तो इन मंत्रों से कम हो जायेगी । इसलिए आपको यह त्रिमंत्र का रहस्य समझाया। इसके आगे विशेष कुछ जानने की जरूरत नहीं रहती । - जय सच्चिदानंद
SR No.009605
Book TitleTrimantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size216 KB
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