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________________ त्रिमंत्र त्रिमंत्र इतना सुंदर है कि अकेली चिंता ही नहीं, पर क्लेश भी चला जाये उसके घर में से। पर बोलना आता ही नहीं है न! अगर बोलना आया होता तो ऐसा नहीं होता। किसी ने भी नवकार मंत्र दे दिया और हम बोलने लगे उसका अर्थ नहीं है। प्रश्नकर्ता : वह तो आपके पास से लेंगे। दादाश्री : लाइसेन्सवाली दुकान हो और वहाँ से लिया हो तो चलेगा। यदि बिना लाइसेन्सवाले के यहाँ से लेंगे तो क्या होगा? वह खोटा, नकली माल पकड़ा दे। शब्द वही के वही होंगे पर माल नकली होगा। आपको नकली माल पसंद है या असली पसंद है? नवकार मंत्र समझकर बोलना चाहिए। समझकर बोलने पर सभी भगवंतों को पहुँचेगा और हमारा नमस्कार तुरंत स्वीकार हो जायेगा। इस 'दादा भगवान' थु (द्वारा) बोलें कि पहुँच ही जाता है और फल प्राप्त होता है। यह तो पहले साल व्यापार किया और इतना फल प्राप्त हुआ, तो दस साल तक व्यापार चलता रहे तो? वह पीढी कैसी जम जायेगी? 'नमो अरिहंताणं' कहते ही सीमंधर स्वामी नज़र आने चाहिए। फिर 'नमो सिद्धाणं' वह नज़र नहीं आये पर लक्ष्य में होना चाहिए कि मैं अनंत ज्ञानवाला हूँ, मैं अनंत दर्शनवाला हूँ। (कैवल्यज्ञान, कैवल्यदर्शन वही परम ज्योतिस्वरूप भगवान हैं।) वे गुण लक्ष्य में होने चाहिए। 'नमो आयरियाणं' वे आचार्य भगवान, खद आचार का पालन करें और दूसरों को पालन करवायें। यह सब लक्ष्य में रहना चाहिए। प्राप्त करवाये यथार्थ फल ये सभी नवकार मंत्र भजते हैं, उसका एक तो प्राकृतिक फल आयेगा, भौतिक में सुंदर फल आयेगा। पर मैं तो इन सभी को ये जो 'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरते...' बुलवाता हूँ न, वे नमस्कार इसी नवकार मंत्र से यहाँ लिए हैं। ये जो नमस्कार बुलवाता हूँ, वे एक्जेक्ट उन्हें पहुँचते हैं और उसका तुरंत एक्जेक्ट (यथार्थ) फल मिलता है, और नवकार मंत्र का फल तो जब आये तब सही। लाखों लोग यह नवकार मंत्र बोलते हैं, वह किसे पहुँचता है? कुदरत का नियम ऐसा है कि जिसका है उसे पहुँचता है पर सच्चे भाव से बोलें तो। तब किसका निदिध्यासन करना? प्रश्नकर्ता : त्रिमंत्र बोलते समय प्रत्येक पंक्ति पर किसका निदिध्यासन करना चाहिए, यह ब्यौरेवार बताइये। दादाश्री : अध्यात्म को लेकर आपको किसी पर प्रेम आया है? आपको प्रेम का उछाल आया है किसी पर? किसके ऊपर आया है? प्रश्नकर्ता : आपके प्रति, दादाजी। दादाश्री : तो उसका ही ध्यान करें। जिसके प्रति प्रेम का उछाल आये न, उसका ध्यान करना। उपयोगपूर्वक करने पर संपूर्ण फल लोग तो नवकार मंत्र अपनी भाषा में ले गये। महावीर भगवान ने ऐसा कहा था कि इसे किसी प्राकृत भाषा में मत ले जाना, अर्धमागधी भाषा में रहने देना। उसका इन लोगों ने क्या अर्थ किया कि प्रतिक्रमण अर्धमागधी भाषा में ही रहने दिया और इस मंत्र के शब्दों के अर्थ निकालते रहे ! प्रतिक्रमण उसमें तो 'क्रमण' है और यह तो मंत्र है। यदि प्रतिक्रमण सही तरीके से नहीं समझा जाये तो वे (एक ओर) गालियाँ देते रहते हैं और (दूसरी ओर) उसके प्रतिक्रमण करते रहते हैं!
SR No.009605
Book TitleTrimantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size216 KB
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