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टकराव टालिए अज्ञान दशामें सहन करनेका होता है। यहाँ तो हमें स्पण्टीकरण कर लेना कि इसका परिणाम क्या ? उसका कारण क्या ? बहीखातेमें विधिवत देख लेना कोई चीज़ बहीखाते के बाहरकी होती नहीं है ।
टकराये, अपनी ही भूलके कारण ! इस दुनियामें जहाँ कहीं टकराव होता है वह आपकी ही भूल है, सामनेवालेकी भूल नहीं है ! सामनेवाले तो टकरानेवाले ही है । "आप क्यों टकराये ?" तब कहें, "सामनेवाला टकराया इसलिए !" तो आप अंध कि वह अंधा हो गया ?
प्रश्नकर्ता : टकराव से टकराव करें तब क्या होगा?
दादाश्री : सिर फूट जायेगा ! तो टकराव होने पर हमें क्या समझ जाना है?
प्रश्रकर्ता : हमारी ही गलती है ।
दादाश्री : हाँ, और उसे तुरन्त एक्सेप्ट (स्वीकार) कर लेना । टकराव हुआ इसलिए हमें देखना हा कि "ऐसा मैंने क्या कह (8)दिया कि टकराव हो गया ?" अपनी भूल मालूम हो कि हो गा निवारण, फिर पझल सॉल्व (गुत्थी सुलझ गई) हो गया । वर्ना, जहाँ तक हम "सामनेवालेकी भूल है" ऐसा खोजते फिरेंगे तब तक यह पझल सॉल्व नहीं होगा । "हमारी भूल है " ऐसा स्वीकीर करोंगे तभी इस संसारका पार पाओगे । दूसरा कोई उपाय ही नहीं है । दूसरे सभी उपाय उलझानेवाले हैं
और उपाय करना वह हमारा अंदरूनी गुप्त अहंकार है । उपाय किसलिए खोजते हो ? सामनेवाला हमारी भूल निकाले तो हमें ऐसा कहना है कि "मैं तो पहले से ही टेढ़ा हूँ।"
बुद्धिसे ही संसारमें टकराव होता है । अरे एक औरतके कहने पर चलने पर भी पतन होता है, टकराव होता है, तब तो यह तो बुद्धिबाई ! उसकी सुनने पर तो कहाँ से कहाँ जा गिरे । अरे रात दो बजे जगाकर
टकराव टालिए बुद्धिबाई उलटा दिखाये । औरत तो अमक समय ही साथ होगी मगर बुद्धिबाई तो निरंतर साथ ही साथ रहेगी । तब बुद्धि तो 'डीथ्रोन'! (पदभ्रष्ट) कराये ऐसी है।
अगर आप मोक्ष ही पाना चाहते हैं त बुद्धिकी एक नहीं सुननी होगी । बुद्धि तो ऐसी है कि ज्ञानी पुरुषका भी उलटा दिखाये । अबे, जिसके कारन तुझे मोक्ष प्राप्त हो ऐसा है, उसका ही उलटा देखा ? इससे आपका मोक्ष आपसे अनंत अवतार दूर हो जायेगा ।
टकराव यही हमारी अज्ञानता है । किसीके साथ टकराव हआ. वह हमारी अज्ञानता की निशानी है । खरा-खोटा भगवान देखते ही नहीं । भगवान तो यही देखते हैं कि, "वे कुछ भी बोले मगर कही टकराये तो नहीं है न?" तब कहे, "नहीं" बस हमें इतना ही चाहिए ।"अर्थात खरा-खोटा भगवान के यहाँ होता ही नहीं है, वह तो ये लोगोके यहाँ है । भगवानके यहाँ तो द्वंद्व ही होता नहीं है न!
__टकराये, वे सभी दीवारें ! दीवार टकराई तब दीवारकी भूल कि हमारी भूल ? दीवारके पास हम न्याय माँगे कि "खिसक जा, खिसक जा ।" तब ? (9) और हम कहें कि, "मैं यहाँ होकर ही जाऊँगा" तब किसका सिर फूट जायेगा ?
प्रश्रकर्ता : हमारा
दादाश्री : अर्थात किसे सावधान रहना होगा ? उसमें दीवारको क्या? उसमें दोष किसका ? जिसे लगा उसका दोष । अर्थात जगत दीवार के जैसा है।
दीवारसे टकराने पर दीवर के साथ मतभेद होगा सही? दीवारसे या किसी समय किवाड़से आप टकरा गये, तो उस समय किवाड़के साथ अथवा दीवार के साथ मतभेद होगा ?