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टकराव टालिए से जरा भी टकराये तो खतम । सामनेवाला टकराये तब हमें संयम रखना चाहिए । टकराव तो होना ही नहीं चाहिए । फिर चाहें यह देह जानी हो तो जाये, मगर टकरावमें नहीं आना चाहिए एक घर्षण नहीं हो तत मनुष्य मोक्षमें जायें । किसीने सिख लिया कि मुझे घर्षणमें आना ही नहीं है । तो फिर उसे बीचमें सिख लिया कि मुझे घर्षणमें आना ही नहीं तो फिर उसे बीचमें गुरु की या किसीकी भी जरूरत नहीं है । एक या दो अवतारमें सीधा मोक्षमें जाये । “घर्षणमें आना ही नहीं है ।" ऐसा यदि उकसी श्रद्धामें बैठ गया और निश्चय ही हो गया, तो तबसे ही समकित हो गया ! अर्थात जो यदि किसीको समकित करना हो तो हम गारन्टी हेते है कि जाइए, घर्षण नहीं करनेका निश्चित कीजिए वहाँसे समकित हो जायेगा । देहका टकराव हुआ हो तो दवाई करनेसे मीट जायेगा । लेकिन घर्षण अऔ संघर्षणसे मनमें जो दाग़ लगे हो बुद्धि पर दाग़ लगे हो उसे कौन निकाले ? हजार अवतार करने परभी नहीं जाये ।
प्रश्नकर्ता : घर्षण और संधर्षणसे मन और बुद्धि पर घाव पडते है ?
टकराव टालिए (16) इस संसारमें बैरसे घर्षण होता है । संसारका मल बीज बैर है । जिसके बैर और घर्षण दो बंध हो गये उसका मोक्ष हो गया । प्रेम बाधक नहीं, बैर जाये तो प्रेम उत्पन्न हो जाये ।
कॉमनसेन्स, एवरीव्हेर एप्लिकेबल ! (व्यवहार-समझ, हर जगह काम आये!)
व्यवहार शुद्धिके लिए क्या चाहिए य "कोमनसेन्स" कम्पलीट (संपूर्ण व्यवहारिक समझ) चाहिए । स्थिरता-गंभीरता चाहिए । व्यवहारमें "कोमनसेन्स" की जरूरत । "कोमनसेन्स" अर्थात "एवरीव्हेर एप्लिकेबल" (हर जगह काम आये) स्वरूप ज्ञान के साथ "कोमनसेन्स" होने पर बड़ी शोभा दे।
प्रश्नकर्ता : "कोमनसेन्स" कैसे प्रकट हो ?
दादाश्री : कोई खुदसे टकराये पर खुद किसीसे नहीं टकराये, इस तरह रहे, तो "कोमनसेन्स" उत्पन्न होगी । लेकिन खुद किसीसे टकराना नहीं चाहिए, वर्ना "केमनसेन्स" जाती रहेगी ! घर्षण अपनी औरसे नहीं होना चाहिए।
सामनेवाले के घर्षणसे "कोमनसेन्स" उत्पन्न होती है । यह आत्माकी शक्ति ऐसी है कि घर्षणके समय कैसा बर्ताव करना उसके सारे उपाय दिखा दे और एक बार दिखानेके पश्चयात वह ज्ञान जायेगा नहीं । ऐसा करते करते "कोमनसेन्स" जमा होती है । मेरे खास घर्षण नहीं होनेवाला, मेरी "कोमनसेन्स" जबरस्त है इसलिए आप क्या कहना चाहते है वह तुरन्त ही समझमें आ जाये । लोगोंको ऐसा लगे कि यह दादाका अहित कर रहा है, पर मेरी समझमें तुर्त आ जाये कि यह अहित, अहित नहीं है । सांसारिक अहित नहं है और धार्मिक अहित भी नहीं है और आत्माके सम्बन्धमें तो अहित है ही नहीं । लोगोको ऐसा लगे कि आत्माका अहित कर रहे है, पर हमें उसमे हित समझमें आये । इतना इस“कोमनसेन्स''का
दादाश्री : अरे ! मन पर, बुद्धि पर तो क्या सारे अंत:करण पर घाव पड़ते रहें और उसका असर शरीर पर भी होगा । इसलिए घर्षणसे कितनी सारी मुसीबतें है।
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं, घर्षणसे सारी शक्तिर्या ख़त्म हो जाये । तो जागृतिसे शक्ति वापस आयेगी सही ?
दादाश्री : शक्तिर्या खींचनेकी जरूरत नहीं है । शक्तिर्या तो है ही। अब उत्पन्न होती है । पहले जो घर्षण हुए थे और उससे नुकशान हुआ था, वह भरपाई होता है । पहले जो घर्षण हए थे और उससे नुकशान हुआ था, वह भरपाई होता है । लेकिन अब यदि नया घर्षण पैदा करें तो फिर शक्ति जाती रहेगी । आयी हुई शक्ति भी जाती रहेगी और खुद घर्षण होने ही नहीं दे तो शक्ति उत्पन्न होती ही रहेगी !