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________________ सत्य-असत्य के रहस्य ३९ आत्मा कबूल करता है। यहाँ विवाद नहीं होता है। अपने यहाँ कभी भी विवाद हुआ है? कोई व्यक्ति शायद कभी ज़रा कच्चा पड़ गया होगा ! दादा के शब्द पर फिर कोई बोला नहीं है। क्योंकि आत्मा की शुद्ध प्योर बात है। और रागी -द्वेषी वाणी को सच कहा जाएगा? प्रश्नकर्ता: नहीं कहा जाएगा, पर व्यवहार सत्य कहलाएगा न? दादाश्री : व्यवहार सत्य मतलब निश्चय में असत्य है। व्यवहार सत्य मतलब सामनेवाले को जो फिट हुआ तो वह सत्य और फिट नहीं हुआ तो असत्य । व्यवहार सत्य तो वास्तव में सत्य है ही नहीं । प्रश्नकर्ता: हम सत्य मानते हों और सामनेवाले को फिट नहीं हुआ तो ? दादाश्री : फिट नहीं हुआ तो वह सब झूठा। हम भी कहते हैं न! किसीको जरा-सी हमारी बात समझ में नहीं आई हो तो हम उसकी भूल नहीं निकालते । हमारी भूल कहते हैं कि, 'भाई, हमारी ऐसी कैसी भूलें रह गई कि उसे नहीं समझ में आया। समझ में आना ही चाहिए।' हम हमारा दोष देखते हैं। सामनेवाले का दोष ही नहीं देखते। मुझे समझाना आना चाहिए। यानी सामनेवाले का दोष होता ही नहीं है। सामनेवाले के दोष देखते हैं, वह तो भयंकर भूल कहलाती है। सामनेवाले का दोष तो हमें लगता ही नहीं, कभी भी लगा ही नहीं। इस तरह होता है मतभेद का निकाल प्रश्नकर्ता : दुष्कृत्य के सामने भी लड़ना नहीं चाहिए ? अनिष्ट के सामने ? दादाश्री : लड़ने से आपकी शक्तियाँ बेकार चली जाएँगी सारी । इसलिए भावना रखो कि निकाल करना है। हमेशा आर्बिट्रेशन (सुलह ) से ही पूरा फायदा है। दूसरे झंझट में पड़ने जैसा नहीं है। उससे आगे गए सत्य-असत्य के रहस्य कि नुकसान! अब आर्बिट्रेशन कब होता है? कि दोनों पार्टियों के भाव हों कि 'हमें निकाल ही करना है' तो ही आर्बिट्रेशन होता है। ४० तो भी अच्छा हल निकल आए। मतभेद पड़े वहाँ अपने शब्द वापिस खींच लेने, वह समझदार पुरुषों का रिवाज है। जहाँ मतभेद पड़े, वहाँ हम कहें कि दीवार के साथ टकराए। अब वहाँ पर किसका दोष ? दीवार का दोष कहना चाहिए? ! और सच्ची बात में मतभेद कभी भी होता ही नहीं है। अपनी सच्ची बात है और सामनेवाले की झूठी है, पर टकराव हुआ तो वह झूठा है। इस जगत् में सच्चा कुछ होता ही नहीं है। सामनेवाले ने आपत्ति उठाई वह सारा ही झूठ है। सभी बातों में दूसरे आपत्ति उठाते हैं?! मेरा सच, वही अहंकार है यह तो खुद का इगोइज़म है कि यह मेरा सही है और दूसरे का गलत है। व्यवहार में जो 'सही-गलत' बोला जाता है वह सब इगोइज़म है। फिर भी व्यवहार में कौन-सा सही या गलत? जो मनुष्यों को या किसी जीव को नुकसानदायक वस्तुएँ हैं, उन्हें हम गलत कहते हैं। व्यवहार को नुकसानदायक है, सामाजिक नुकसानदायक है, जीवों को नुकसानदायक है, छोटे जीवों को या दूसरे जीवों को नुकसानदायक है, उन सबको हम गलत कह सकते हैं। दूसरा कुछ 'सही-गलत' होता ही नहीं है, दूसरा सब 'करेक्ट' ही है। फिर हर किसीका ड्रॉईंग अलग ही होता है। वह सब ड्रोईंग कल्पित है, सच्चा नहीं है। जब इस कल्पित में से निर्विकल्प की तरफ आता है, और निर्विकल्प की हैल्प लेता है न, तब निर्विकल्पता उत्पन्न होती है। वह एक सेकन्ड के लिए भी हुआ, कि हमेशा के लिए हो गया ! आपको समझ में आई क्या यह बात ? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : हाँ, एक बार समझ लेने की ज़रूरत है कि यह ड्रॉईंग कैसा है ! वह सारा ड्रॉईंग समझ लें न तो फिर हमारी उस पर से प्रीति उठ जाएगी।
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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