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सत्य-असत्य के रहस्य
सत्य-असत्य के रहस्य
__ नहीं गलत कुछ प्रभु के यहाँ बाक़ी, इस दुनिया में जो कुछ गलत चीजें होती हुई देखने में आती हैं, उनका अस्तित्व ही नहीं है। इन गलत वस्तुओं का अस्तित्व आपकी कल्पना से खड़ा हो गया है। भगवान को गलत चीज़ इस जगत् में कभी लगी ही नहीं। हरकोई जो कुछ कर रहा है वह खुद की जोखिमदारी पर ही कर रहा है। उसमें गलत वस्तु नहीं है। चोरी करके लाया, वह लोन लेकर बाद में फिर वापिस करेगा। दान देता है, वह लोन देकर बाद में लेगा। इसमें गलत क्या है? भगवान को कभी भी गलत लगा ही नहीं। किसी भाई को साँप काटे तो उसे भगवान जानते हैं कि इसने उसका हिसाब
चुकाया। हिसाब चुकाते हैं, उसमें कोई गुनहगार है ही नहीं न! गलत चीज़ है ही नहीं न!
विनाशी की पकड़ क्या? और वापिस ऐसा जो न्याय करते हैं न. वे आग्रहवाले होते हैं। 'बस. तुझे ऐसा करना ही पड़ेगा।' ऐसा जानते हो आप? उसे सत्य की पकड़ पकड़ना कहा जाता है। इससे तो वह अन्यायवाला अच्छा है कि 'हाँ, भाई तू कहे वैसे।'
लौकिक सत्य, वह सापेक्ष वस्तु है। कुछ समय के बाद वह असत्य हो जाती है। इसलिए उसकी खेंच नहीं होनी चाहिए, पकड़ नहीं होनी चाहिए।
भगवान ने कहा है कि पाँच लोग कहें वैसा मानना और तेरी पकड मत पकड़ना। जो पकड़ पकड़े वह अलग है। खेंच रखो, तो वह आपको नुकसान और सामनेवाले को भी नुकसान ! यह सत्य-असत्य वह 'रिलेटिव सत्य है, व्यवहार सत्य है, उसकी खेंच नहीं होनी चाहिए।'
सत्य कैसे कहा जाए? इसलिए अपने में कहावत है न, गधे की पूंछ पकड़ी सो पकड़ी! छोड़ता नहीं अपने सत्य को!! इसलिए सत्य और वह सब पद्धतिअनुसार होना चाहिए। सत्य किसे कहें वह 'ज्ञानी' के पास से समझ लेना है।
और जो सत्य विनाशी है, उस सत्य के लिए झगड़ा कितना करना चाहिए? नोर्मेलिटी उसकी हद तक ही होती है न! जहाँ रिलेटिव ही है, फिर उसकी बहुत खींचतान नहीं करनी चाहिए। उसे छोड़ देना चाहिए यानी पूँछ पकड़कर नहीं रखनी चाहिए। समय आए तब छोड़ देना चाहिए।
अहंकार वहाँ, सर्व असत्य सत्य-असत्य कोई बाप भी नहीं पूछता है। मनुष्य को विचार तो करना चाहिए कि मेरा सत्य है फिर भी सामनेवाला व्यक्ति क्यों स्वीकार नहीं करता? क्योंकि सत्य बात करने के पीछे आग्रह है, कच-कच है!
सत्य उसे कहा जाता है कि सामनेवाला स्वीकार करता हो। भगवान ने कहा है कि सामनेवाला खींचे और आप छोड़ नहीं दो तो आप अहंकारी हो, सत्य को हम देखते नहीं हैं। भगवान के वहाँ सत्य की क़ीमत नहीं है। क्योंकि यह व्यवहार सत्य है। और व्यवहार में अहंकार आ गया, इसलिए हमें छोड़ देना चाहिए।
आप बहुत ज़ोर से खींचते हो और मैं ज़ोर से खींचूँ तो वह टूट जाएगा। दूसरा क्या होगा इसमें?! इसलिए भगवान ने कहा है कि डोरी तोड़ना मत। कुदरती डोरी है यह ! और तोड़ने के बाद गाँठ पड़ेगी। और पड़ी हुई गाँठ निकालना वह आपका काम नहीं रहा। फिर कुदरत के हाथ में गया। वह केस कुदरत के हाथ में गया। इसलिए आपके हाथ में है तब तक कुदरत के हाथ में मत जाने देना। कुदरत की कोर्ट में तो हालत बिगड़ जाएगी। इसलिए कुदरत की कोर्ट में नहीं जाने देने के लिए, हम जानें कि यह बहुत खींच रहे हैं और वह तोड़ देनेवाले हैं, तो उसके बदले तो हमें ढीला रख देना चाहिए। पर ढीला रखें तो वह भी ठीक तरह से रखना। नहीं तो वे लोग सब गिर जाएँगे। इसलिए धीरे-धीरे रखना। वह तो हम
यह सत्य विनाशी है, इसलिए उससे लिपटकर मत रहना। जिसमें लात लगे वह सत्य ही नहीं होता। कभी एकाध-दो लातें लगे, पर यह तो लातें लगती ही रहती हैं। जो सत्य हमें गधे की लातें खिलाए. उसे