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सत्य-असत्य के रहस्य
इस तरफ माँगनेवाले बेचारे गले तक आ गए हैं और इस तरफ वह मैनेजर गले तक आ गया है, 'आप दस हज़ार नहीं दोगे तो मैं आपको चेक नहीं दूंगा।'
तब ये दूसरे, सेकन्ड प्रकार के लुटेरे! ये सुधरे हुए लुटेरे और वे बिना सुधरे हुए लुटेरे!! ये सिविलाइज्ड लुटेरे, वे अन्सिविलाइज्ड लुटेरे !!!
सत्य-असत्य के रहस्य
प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है।
दादाश्री : मैं तो अपने व्यापार में कह देता था कि, 'भाई, दे आओ रुपये। हम भले ही चोरी नहीं करते या चाहे जो नहीं करते, पर रुपये देकर आओ।' नहीं तो लोगों को चक्कर लगवाना, वह अपने जैसे अच्छे लोगों का काम नहीं है। इसलिए रिश्वत देना, उसे मैं गुनाह नहीं कहता हूँ। गुनाह तो किसीने हमें माल दिया है और उसे हम टाइम पर पैसे नहीं देते, उसे गुनाह कहता हूँ।
लुटेरा रास्ते में पैसे माँगे तो दे दोगे या नहीं? या फिर सत्य की खातिर नहीं दोगे?
प्रश्नकर्ता : दे देने पड़ेंगे।
दादाश्री : क्यों वहाँ पर दे देते हो?! और यहाँ क्यों नहीं देते?! ये सेकन्ड प्रकार के लुटेरे हैं। आपको नहीं लगता ये सेकन्ड प्रकार के लुटेरे हैं?!
प्रश्नकर्ता : लुटेरे तो पिस्तौल दिखाकर लेते हैं न?
दादाश्री : यह नई पिस्तौल दिखाता है। यह भी डर तो डाल देता है न कि 'चेक तुझे महीनेभर तक नहीं दूंगा!' फिर भी गालियाँ खाने तक हम पकड़कर रखें और फिर रिश्वत देने के लिए हाँ कहें, उसके बदले गालियाँ खाने से पहले 'पत्थर के नीचे से हाथ निकाल लो' ऐसा कहा है भगवान ने। पत्थर के नीचे से सँभालकर हाथ निकालना, नहीं तो पत्थर के बाप का कुछ भी जानेवाला नहीं है। आपका हाथ टूट जाएगा। कैसा लगता है आपको?
प्रश्नकर्ता : बिलकुल ठीक है।
दादाश्री : अब ऐसा पागलपन कौन सिखाएगा? कोई सिखाएगा? सभी सत्य की पूँछ पकड़ते हैं। अरे, नहीं है यह सत्य। यह तो विनाशी सत्य है, सापेक्ष सत्य है। हाँ, यानी किसीकी हिंसा होती हो, किसीको दुःख होता हो, कोई मारा जाता हो, ऐसा नहीं होना चाहिए।
सत्य ठहराने से, बने असत्य प्रश्नकर्ता : सत्य को सत्य ठहराने से, उसका प्रयत्न करने से असत्य बन जाता है।
दादाश्री : इस जगत् में वाणी मात्र सत्य-असत्य से बाहर है। उसे सत्य में ले जाना हो तो ले जा सकते हैं. असत्य में ले जाना हो तो ले जा सकते हैं। वे दोनों आग्रहपूर्वक बोले जाएँ, ऐसा नहीं है। आग्रहपूर्वक बोले, वह पोइजन ! शास्त्रकारों ने कहा है कि बहुत अधिक आग्रह किया इसलिए असत्य है और आग्रह नहीं किया इसलिए सत्य है। और सत्य को सत्य ठहराने जाओगे तो असत्य बनकर खड़ा रहेगा, ऐसे जगत् में सत्य ठहराते हो?!
इसलिए सत्य-असत्य का झंझट रहने दो। वैसे झंझटवाले वहाँ कोर्ट में जाते हैं। पर हम कोई कोर्ट में नहीं बैठे हैं। हमें तो यहाँ दुःख नहीं हो, वह देखना है। सत्य बोलते हुए सामनेवाले को दुःख होता हो तो हमें बोलना ही नहीं आता।
शोभायमान होता है सत्य, सत्य के रूप में
ऐसा है, सत्य की हरएक जगह पर ज़रूरत है और यदि सत्य हो तो विजय होती है। पर सत्य उसके सत्य के रूप में होना चाहिए, उसकी परिभाषा में होना चाहिए।
खुद का सच्चा ठहराने के लिए लोग पीछे पड़े हैं। परन्तु सच्चे को सच्चा मत ठहराना। सच्चे में, यदि कोई सामनेवाला व्यक्ति आपके सच के