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सत्य-असत्य के रहस्य
सत्य-असत्य के रहस्य पसंद?
प्रश्नकर्ता : पसंद आना वह दूसरा प्रश्न है। पर नहीं पसंद हो तो भी करना पड़ता है, व्यवहार के लिए।
दादाश्री : हाँ, इसलिए जो करना पड़ता है, वह अनिवार्य है। तो इसमें आपकी इच्छा क्या है? ऐसा करना है या नहीं करना है?
प्रश्नकर्ता : यह करने की इच्छा नहीं है, पर करना पड़ता है।
दादाश्री : वह अनिवार्य रूप से करना पड़े, उसका पछतावा होना चाहिए। आधा घंटा बैठकर पस्तावा होना चाहिए, कि 'यह नहीं करना है फिर भी करना पड़ता है।' अपना पछतावा जाहिर किया इसलिए हम गुनाह में से छूट गए। यह तो अपनी इच्छा नहीं होने पर भी जबरदस्ती करना पड़ता है, उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा और कितने ही लोग कहते हैं, 'भाई, ये करते हैं वही ठीक है, ऐसा ही करना चाहिए।' तो उनको उल्टा पड़ेगा। ऐसा करके खुश हों वैसे भी इन्सान हैं न! यह तो आप हल्के कर्मवाले हैं इसलिए आपको यह पछतावा होता है। नहीं तो लोगों को पछतावा भी नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : पर फिर से रोज तो वह गलत करने ही वाले हैं।
दादाश्री : गलत करने का प्रश्न नहीं है। यह पछतावा करते हो वही आपके भाव हैं। हो गया, वह हो गया। वह तो आज डिस्चार्ज है और डिस्चार्ज में किसीका चलता ही नहीं। डिस्चार्ज मतलब अपने आप स्वाभाविक रूप से परिणमित होना। और चार्ज मतलब क्या? कि खुद के भाव सहित होना चाहिए। कई लोग उल्टा करते हैं, फिर भी भाव में ऐसा ही रहता है कि 'यह ठीक ही हो रहा है' तो वह मारा गया समझो। पर जिसे यह पछतावा होता है, उसकी यह भूल मिट जाएगी।
'नंबर टू', लुटेरे प्रश्नकर्ता : पर हमें तो जीवन में ऐसे कुछ अवसर आते हैं कि
जब गलत बोलना ही पड़ता है। तब क्या करना चाहिए?
दादाश्री : कितनी जगहों पर झूठ बोलना अच्छा है और कितनी जगहों पर सच बोलना, वह भी अच्छा है। भगवान को तो 'संयम है या नहीं' उससे ही मतलब है। संयम मतलब किसी जीव को दःख नहीं देता है न! गलत बोलकर दु:ख नहीं देना चाहिए।
कितने कानून परमानेन्ट होते हैं और कितने टेम्परेरी कानून होते हैं। टेम्परेरी को लोग परमानेन्ट कर देते हैं और बहुत मुश्किल खड़ी हो जाती है। टेम्परेरी से तो एडजेस्टेबल होकर, उस अनुसार निकाल करके आगे काम निकाल लेना चाहिए, कहीं बैठे रहते हैं पूरी रात?!
प्रश्नकर्ता : तो व्यवहार किस तरह करना चाहिए?
दादाश्री : विषमता खड़ी नहीं होनी चाहिए। समभाव से निकाल करना चाहिए। हमें जहाँ से काम निकलवाना हो, वह मैनेजर कहे, 'दस हजार रुपये दो तो आपका पाँच लाख का चेक निकाल दूंगा।' अब हमारे चोखे व्यापार में तो कितना नफा होता है? पाँच लाख रुपये में से दो लाख अपने घर के होते हैं और तीन लाख लोगों के होते हैं, तो वे लोग चक्कर लगाए तो अच्छा कहलाएगा? इसलिए हम उस मैनेजर से कहें, 'भाई, मझे नफा बचा नहीं है। ऐसे-वैसे समझाकर, पाँच हजार में निकाल करना। नहीं तो अंत में दस हजार देकर भी अपना चेक ले लेना चाहिए। अब 'वहाँ मझसे ऐसे रिश्वत कैसे दी जाए?' ऐसा करो, तब कौन इन सब लोगों को जवाब देगा? वह माँगनेवाला गालियाँ देगा, इतनी-इतनी! जरा समझ लो, जैसा समय आए उस अनुसार समझकर काम करो!
रिश्वत देने में गुनाह नहीं है। यह जिस समय पर जो व्यवहार आया, वह व्यवहार तुझे एडजस्ट करना नहीं आया, उसका गनाह है। अब यहाँ कितने पकड़ पकड़कर रखते हैं?! ऐसा है न, अपने से एडजस्ट हो, जब तक लोग हमें गालियाँ नहीं दें और अपने पास बैंक में हों, तब तक पकड़कर रखना। पर खर्चा बैंक में जमा रकम से ज्यादा हो और पैसे माँगनेवाले गालियाँ दे रहे हों तो क्या करना चाहिए? आपको कैसा लगता है?