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________________ सत्य-असत्य के रहस्य सत्य-असत्य के रहस्य चाहे जैसा झूठ करे तो भी चल जाता है। प्रश्नकर्ता : तो उसे कोई नुकसान नहीं है? दादाश्री : नुकसान तो है, पर आनवाले जन्म का। इस जन्म में तो उसे पिछले जन्म का फल मिला है। और यह झूठ बोला न, उसका फल उसे आनेवाले भव में मिलेगा। अभी उसने यह बीज रोपा है। बाक़ी, यह कोई अंधेर नगरी चौपट राजावाला राज नहीं है कि चाहे जैसा चले! वहाँ अभिप्राय बदलो अब आप पूरे दिन में एक भी कर्म बांधते हो क्या? आज क्याक्या कर्म बांधा? जो बांधोगे वह आपको भोगना पड़ेगा। खुद की जिम्मेदारी है। इसमें भगवान की किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं है। प्रश्नकर्ता : हम झूठ बोले हों, वह भी कर्म ही बांधा कहा जाएगा न? तब तक जो उसके रिएक्शन हैं उतने बाक़ी रहेंगे। उतना हिसाब आपको आएगा। आपको फिर उतना अवश्य ही झूठ बोलना पड़ेगा, तो उसका पश्चाताप कर लेना। अब पश्चाताप करो, फिर भी वापिस जो झूठ बोले उस कर्मफल का भी फल तो आएगा। और वापिस वह तो भुगतना ही पड़ेगा। वे लोग आपके घर से बाहर जाकर आपकी बुराई करेंगे कि, 'क्या ये चंदूभाई, पढ़े-लिखे आदमी, ऐसा झूठ बोले?! उनकी यह काबलियत है?!' इसलिए बुराई का फल भोगना पड़ेगा वापिस, पश्चाताप करोगे तो भी। और जो पहले से झूठ का पानी बंद कर दिया हो, कॉजेज ही बंद कर दिए जाएँ, तो फिर कॉज़ेज़ का फल और फल का भी फल नहीं होगा। दादाश्री : बेशक! पर झूठ बोले हों न, उसके बदले झूठ बोलने का भाव करते हो, वह अधिक कर्म कहलाता है। झूठ बोलना वह तो मानो कि कर्मफल है। झूठ बोलने का भाव ही, झूठ बोलने का अपना निश्चय, वह कर्मबंध करवाता है। आपको समझ में आया? यह वाक्य कुछ हैल्प करेगा आपको? क्या हैल्प करेगा? इसलिए हम क्या कहते हैं? झूठ बोला गया, पर ऐसा नहीं बोलना चाहिए' ऐसा तू विरोधी है न? हाँ, तो यह झूठ तुझे पसंद नहीं ऐसा निश्चित हो गया कहलाएगा। झूठ बोलने का तुझे अभिप्राय नहीं है न, तो तेरी जिम्मेदारी का एन्ड आ जाता है। प्रश्नकर्ता : पर जिसे झूठ बोलने की आदत पड़ गई हो, वह क्या करे? दादाश्री : उसे तो फिर साथ-साथ प्रतिक्रमण करने की आदत डाल देनी पड़ेगी। और प्रतिक्रमण करे तो फिर जोखिमदारी हमारी है। इसलिए अभिप्राय बदलो! झूठ बोलना जीवन के अंत के समान है। जीवन का अंत लाना और झूठ बोलना, वे दोनों एक समान हैं. ऐसा डिसाइड करना पड़ेगा। और फिर सत्य की पूँछ मत पकड़ना। द्रव्य में झूठ, भाव में सत्य प्रश्नकर्ता : यह व्यापार करते हैं, उसमें किसीसे कहें, 'तू मेरा माल काम में ले, तुझे उसमें से एक-दो प्रतिशत दूँगा।' वह गलत काम तो है ही न? दादाश्री : गलत काम हो रहा है, वह आपको पसंद है या नहीं प्रश्नकर्ता : झूठ बोलना रुक जाना चाहिए। दादाश्री : ना। झूठ बोलने का अभिप्राय ही छोड़ देना चाहिए। और झूठ बोला जाए तो पश्चाताप करना चाहिए कि, 'क्या करूँ?! ऐसे झूठ नहीं बोलना चाहिए।' पर झूठ बोला जाना बंद नहीं हो सकेगा परन्तु झूठ बोलने का अभिप्राय बंद होगा। अब आज से झूठ नहीं बोलँगा, झूठ बोलना, वह महापाप है। महा दुःखदायी है और झूठ बोलना वही बंधन है' ऐसा अभिप्राय यदि आपसे हो गया तो आपके झूठ बोलने के पाप बंद हो जाएंगे। और पूर्व में जब तक ये भाव बंद नहीं किए थे,
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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