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________________ सत्य-असत्य के रहस्य सत्य-असत्य के रहस्य सामने यदि विरोध करे तो जान लेना कि आपका सच नहीं है, कुछ कारण है उसके पीछे। इसलिए सच किसे कहा जाता है? सच्ची बात को सच्चा कब माना जाता है? कि सिर्फ सत्य के सामने नहीं देखना है। वह चारों प्रकार से होना चाहिए। सत्य होना चाहिए. प्रिय होना चाहिए. हितवाला होना चाहिए और मित मतलब कम शब्दों में होना चाहिए, वह सत्य कहलाता है। इसलिए सत्य, प्रिय, हित और मित, इन चार गणों सहित बोलेगा तो सत्य है, नहीं तो असत्य है। वह सत्य खराब लगेगा न! इसलिए यह उदाहरण दिया है। सत्य प्रिय होना चाहिए। नहीं तो सत्य भी यदि सामनेवाले को प्रियकर नहीं हो तो वह सत्य नहीं माना जाता। कोई बूढ़े हों तो उन्हें 'माँजी' कहना चाहिए। उन्हें बढिया कहा हो तो वह कहेगी, 'मरे, मुझे बुढ़िया कहता है?!' अब हो अठहतर साल की, पर उसने बुढ़िया कहा तो पुसाता नहीं है। किसलिए? उसे अपमान जैसा लगता है। इसीलिए हम उन्हें 'माँजी' कहें, कि 'माँजी आइए'। तो वह सुंदर दिखता है और तब वह खुश हो जाती है। क्या भाई, पानी चाहिए? आपको पानी पिलाऊँ?!' कहेंगी। फिर पानी-वानी सभी पिलाती नग्न सत्य, शोभा नहीं देता नग्न सत्य बोलना वह भयंकर गुनाह है। क्योंकि कितनी ही बातों में सत्य तो व्यवहार में बोला जाता है, वही बोलना चाहिए। किसीको दुःख हो, वैसी वाणी सच्ची-सत्य कहलाती ही नहीं। नग्न सत्य मतलब केवल सत्य ही बोलें तो वह भी झूठ कहलाएगा। नग्न स्वरूप में सत्य किसे कहा जाता है? कि खुद की मदर हो उसे कहेंगे कि, 'आप तो मेरे बाप की पत्नी हो!' ऐसा कहे तो अच्छा दिखेगा? यह सत्य हो तो भी माँ गालियाँ देगी न? माँ क्या कहेगी? 'मुए, मुँह मत दिखाना, मर गया तू मेरे लिए!' अरे, यह सत्य कह रहा हूँ। आप मेरे बाप की पत्नी होती हो, ऐसा सब कबूल करें वैसी बात है! पर ऐसा नहीं बोलते। यानी नग्न सत्य नहीं बोलना चाहिए। सत्य, पर प्रिय होना चाहिए यानी सत्य की परिभाषा क्या दी गई है? व्यवहार सत्य कैसा होना चाहिए? व्यवहार सत्य कब तक कहलाता है? कि सत्य की पूँछे पकड़कर बैठे हैं, वह सत्य नहीं है। सत्य मतलब तो साधारण प्रकार से इस व्यवहार में सच होना चाहिए। वह भी वापिस सामनेवाले को प्रिय होना चाहिए। हितकारी, तो ही सत्य तब वहाँ पर फिर सावधान रहने को कहा है, कि सत्य वह सिर्फ प्रिय नहीं पर सामनेवाले को हितकर भी होना चाहिए। सामनेवाले को फायदेमंद होना चाहिए, तो सत्य माना जाएगा। यह तो उसे लूट लेना, धोखा दे देना, वह सत्य कहलाता ही नहीं न! इसलिए सिर्फ सत्य से नहीं चलेगा। सत्य होना चाहिए और वह सामनेवाले को प्रिय लगना चाहिए। सामनेवाले को प्रिय लगे वैसे गुणाकार होने चाहिए। और सत्य सिर्फ प्रिय हो तो भी नहीं चलेगा। वह हितकारी होना चाहिए। सामनेवाले का हित नहीं होता हो तो वह किस काम का?! गाँव में तलाब भर गया हो तो हम बच्चे से कहें, 'देख तलाब पर एक डायन रहती है न, वह बहुत नुकसान करती है...' ऐसे चाहे जिस रास्ते हम उसे डराएँ तो वह असत्य है, फिर भी हितकारी है न?! तो वह सत्य माना जाएगा। प्रश्नकर्ता : पर हितकारी हो वह बात सामान्य रूप से सामनेवाले को प्रिय नहीं लगती। दादाश्री : अब वह हितकारी है या क्या, वह अपनी मान्यता कईबार लोग नहीं कहते कि, 'एय, काणे. त यहाँ आ।' तो उसे अच्छा लगेगा? और कोई धीरे से कहें, 'भाई, आपकी आँख किस तरह चली गई?' तो वह जवाब देगा या नहीं देगा? और उसे काणा कहें तो?! पर
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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