________________
प्रेम
प्रेम, शब्द अलौकिक भाषा का
प्रश्नकर्ता : वास्तव में प्रेम वस्तु क्या है? मुझे वह विस्तारपूर्वक समझना है।
दादाश्री : जगत् में यह जो प्रेम बोला जाता है न, वह प्रेम को नहीं समझने के कारण बोलते हैं। प्रेम की परिभाषा होगी या नहीं होगी ? क्या डेफिनेशन है प्रेम की ?
प्रश्नकर्ता: कोई अटेचमेन्ट कहता है, कोई वात्सल्य कहता है। बहुत तरह के प्रेम है।
दादाश्री : ना। असल में जिसे प्रेम कहा जाता है, उसकी परिभाषा तो होगी ही न?
प्रश्नकर्ता: मुझे आपसे किसी फल की आशा न हो, उसे हम सच्चा प्रेम कह सकते हैं?
दादाश्री : वह प्रेम है ही नहीं। प्रेम संसार में होता ही नहीं। वह अलौकिक तत्त्व है। संसार में जब से अलौकिक भाषा समझने लगता है, तब से ही उस प्रेम का उपादान होता है।
प्रश्नकर्ता : इस जगत् में प्रेम का तत्त्व जो समझाया है वह क्या
है ?
दादाश्री : जगत् में जो प्रेम शब्द है न, वह अलौकिक भाषा का शब्द है, वह लोकव्यवहार में आ गया है। बाकी, अपने लोग, प्रेम को समझते ही नहीं।
इसमें सच्चा प्रेम कहाँ?
प्रेम
आपमें प्रेम है?
आपके बच्चे पर आपको प्रेम है क्या?
प्रश्नकर्ता: होगा ही न !
दादाश्री : तो फिर मारते हो किसी दिन? किसी दिन मारा नहीं बच्चों को? डाँटा भी नहीं?
प्रश्नकर्ता: वह तो कभी डाँटना तो पड़ता ही है न!
दादाश्री : तब प्रेम ऐसी चीज़ है कि दोष नहीं दिखते। इसलिए दोष दिखते है वह प्रेम नहीं था। ऐसा आपको लगता है? मुझे इन सब
पर प्रेम है। किसी का भी दोष मुझे दिखा नहीं अभी तक। तो आपका प्रेम किस पर है, वह कहो न मुझे? आप कहते हो, 'मेरे पास प्रेम की सिलक (जमापूंजी ) है' तो कहाँ है वह ?
सच्चा प्रेम होता है अहेतुकी
प्रश्नकर्ता: फिर तो ईश्वर के प्रति प्रेम, वही प्रेम कहलाता है न?
दादाश्री : ना। ईश्वर के प्रति भी प्रेम नहीं है आपको ! प्रेम वस्तु अलग है। प्रेम किसी भी हेतु बगैर का होना चाहिए, अहेतुकी होना चाहिए। ईश्वर के साथ प्रेम तो दूसरों के साथ क्यों प्रेम नहीं करते? उनसे कुछ काम है आपको! मदर के साथ प्रेम है, वहाँ कोई काम है। पर प्रेम अहेतुकी होना चाहिए। यह मुझे आप पर भी प्रेम है और इन सब पर भी प्रेम है, पर मेरा हेतु नहीं है कोई इसके पीछे !
नहीं स्वार्थ प्रेम में
बाकी, यह तो जगत् में स्वार्थ है। 'मैं हूँ' ऐसा अहंकार है तब तक स्वार्थ है । और स्वार्थ रहे वहाँ प्रेम होता नहीं। जहाँ स्वार्थ हो वहाँ प्रेम रह नहीं सकता, और प्रेम हो वहाँ स्वार्थ रह नहीं सकता ।