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प्रेम है आपको? बंधे हुए तो हैं ही न! प्रेम से तो बंधे हुए ही हैं न!
शुद्ध प्रेमस्वरूप, वे ही परमात्मा अहंकारी को खुश करने में कुछ समय लगे ऐसा नहीं है, मीठीमीठी बातें करो तो ही खुश हो जाता है और ज्ञानी तो मीठी बातें करो तब भी खुश नहीं होते। कोई भी साधन, जगत् में ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिससे 'ज्ञानी' खुश हों। मात्र अपने प्रेम से ही खुश होते हैं। क्योंकि वे सिर्फ प्रेमवाले हैं। उनके पास प्रेम के अलावा कुछ है ही नहीं। पूरे जगत् के साथ उनका प्रेम है।
'ज्ञानी पुरुष' का शुद्ध प्रेम जो दिखता है, ऐसे उघाड़ा दिखता है, वही परमात्मा है। परमात्मा, वह दूसरी कोई वस्तु ही नहीं है। शुद्ध प्रेम जो दिखता है, जो बढ़ता नहीं, घटता नहीं, एक समान ही रहा करता है, उसका नाम परमात्मा, उघाड़े-खुल्ले परमात्मा! और ज्ञान वह सूक्ष्म परमात्मा, वह समझने में देर लगेगी। इसलिए परमात्मा बाहर ढूंढने जाना नहीं है। बाहर तो आसक्ति है सारी। जो प्रेम बढ़े नहीं, घटे नहीं, वह प्रेम है, वे ही परमात्मा हैं!!!
- जय सच्चिदानंद
मूल गुजराती शब्दों के समानार्थी शब्द ऊपरी : बॉस, वरिष्ठ मालिक कल्प : कालचक्र गोठवणी : सेटिंग, प्रबंध, व्यवस्था नोंध : अत्यंत राग अथवा द्वेष सहित लम्बे समय तक याद
रखना, नोट करना नियाणां : अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना
करना धौल : हथेली से मारना सिलक : राहखर्च, पूँजी तायफ़ा : फजीता उपलक : सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लुअस कढ़ापा : कुढ़न, क्लेश अजंपा : बेचैनी, अशांति, घबराहट राजीपा गुरजनों की कृपा और प्रसन्नता सिलक : जमापूंजी पोतापणुं : मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन लागणी : भावुकतावाला प्रेम, लगाव