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थोड़ी भी भूल नहीं की। पर बाहर निकलते समय उसे कहें, चल मेरे साथ, तो नहीं आती वह? वह तो ड्रामा तक ही था, कहती है। वह समझ में आया न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, समझ में आता है।
दादाश्री : इसलिए बच्चों से कहें, 'आ भाई, बैठ जा। तेरे अलावा मेरा दूसरा कौन है?' हम तो हीराबा से कहते थे कि मुझे आपके बिना अच्छा नहीं लगता। यह परदेश जाता हूँ पर आपके बिना मुझे अच्छा नहीं लगता।
प्रश्नकर्ता : बा को सच भी लगता था! दादाश्री : हाँ, सच्चा ही होता। अंदर छूने नहीं देते थे।
प्रश्नकर्ता : पहले के जमाने में माँ-बाप को बच्चों के लिए प्रेम या उनकी संभाल, वह सब करने का टाइम ही नहीं होता था और कोई प्रेम देता भी नहीं था। बहत ध्यान नहीं देते थे। अभी माँ-बाप बच्चों को बहुत प्रेम देते हैं, बहुत ध्यान रखते हैं, सब करते हैं, फिर भी बच्चों को माँ-बाप के लिए बहुत प्रेम क्यों नहीं होता?
दादाश्री : यह प्रेम तो, जो बाहर का मोह ऐसा जागृत हो गया है कि उसमें ही चित्त जाता है। पहले मोह बहुत कम था और अभी तो मोह के स्थान इतने अधिक हो गए हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ। और माँ-बाप भी प्रेम के भूखे होते हैं कि हमारे बच्चे हैं, विनय वगैरह रखें।
दादाश्री : प्रेम ही, जगत् प्रेमाधीन है। जितना मनुष्यों को भौतिक सुख की नहीं पड़ी, उतनी प्रेम की पड़ी हुई है। परन्तु प्रेम टकराया करता है। क्या करें? प्रेम टकराना नहीं चाहिए।
प्रश्नकर्ता : बच्चों में माँ-बाप के प्रति प्रेम बहुत है। दादाश्री : बच्चों को भी बहुत है! पर फिर भी टकराया करते हैं।
आसक्ति, तब तक टेन्शन प्रश्नकर्ता : जितनी, लागणी अधिक, उतना उसमें प्रेम अधिक है ऐसी मान्यता है।
दादाश्री : प्रेम ही नहीं होता न! आसक्ति है सारी। इस जगत् में प्रेम शब्द होता नहीं है। प्रेम बोलना वह गलत बात है। वह अंदर आसक्ति होती है।
प्रश्नकर्ता : तो यह लागणी और लागणी का अतिरेक वह समझाने की कृपा कीजिए।
दादाश्री : लागणी और लागणी का अतिरेक वह इमोशनल में जाता है। व्यक्ति मोशन में नहीं रह सकता, इसलिए इमोशनल हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : अंग्रेज़ी में फीलिंग्स और इमोशन दो शब्द है।
दादाश्री : परन्तु फीलिंग वह अलग ही वस्तु है और इमोशनल वस्तु अलग है। लागणी और लागणी का अतिरेक इमोशनल में जाता है।
कोई भी लागणी है, आसक्ति है, तब तक व्यक्ति को टेन्शन खड़ा होता है और टेन्शन से फिर चेहरा बिगड़ा रहता है। हममें प्रेम है इसलिए टेन्शन बिना रह सकते हैं। नहीं तो दूसरा व्यक्ति टेन्शन बिना रह सकता नहीं न! टेन्शन होता ही है सभी को, जगत् पूरा टेन्शनवाला है !
लागणियों का प्रवाह, ज्ञानी को हमें 'ज्ञानी पुरुष' को लागणियाँ होती है। हाँ, जैसी होनी चाहिए उस तरह की होती है। हम उसे 'होम' को छूने नहीं देते। ऐसा नियम नहीं कि अंदर 'होम' में स्पर्श होने देना। लागणी नहीं हो तो मनुष्य ही कैसे कहलाए?
प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि लागणी तो हमें भी होती है। आपको जैसी होती है, उससे हमें कुछ ऊँची लागणी होती है, सबके लिए होती
है।