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प्रेम
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प्रश्नकर्ता : पर हम उस कक्षा में नहीं पहुँचे कि शांत रह सके। दादाश्री : तो फिर कूदें हम उस घड़ी ! दूसरा क्या करना ? पुलिसवाला फटकारे तब क्यों शांत रहते हो?
प्रश्नकर्ता : पुलिसवाले की ऑथोरिटी है, उसकी सत्ता है।
दादाश्री : तो हमें उसे ऑथोराइज़ (अधिकृत) कर देना चाहिए। पुलिसवाले के सामने सीधे रहते हैं और यहाँ पर सीधा नहीं रह सकते ! बालक हैं, प्रेम भूखे
आज के बच्चों को बाहर जाना अच्छा नहीं लगे ऐसा कर डालो, कि घर में अपना प्रेम, प्रेम और प्रेम ही दिखे। फिर अपने संस्कार चलें ।
हमें यदि सुधारना हो तो सब्ज़ी सुधारनी ( साफ करनी, काटनी ) पर बच्चों को नहीं सुधारना है! इन लोगों को सब्ज़ी सुधारनी आती है। सब्ज़ी सुधारनी नहीं आती?
प्रेम, ऐसा बरसाओ
और आप उसे एक चपत मारो तो वह रोने लगेगा, उसका क्या कारण है? उसे लगा इसलिए! ना, उसे लगने का दुख नहीं है। उसका अपमान किया, उसका उसे दुख है।
प्रेम से ही वश हो जाते हैं
इस जगत् को सुधारने का रास्ता ही प्रेम है। जगत् जिसे प्रेम कहता है वह प्रेम नहीं है, वह तो आसक्ति है। इस बेबी पर प्रेम करो, पर वह प्याला फोड़े तो प्रेम रहेगा? तब तो चिढ़ते हो। इसलिए वह आसक्ति है। प्रेम से ही सुधरे जगत्
और प्रेम से ही सुधरते हैं। यह सब सुधारना हो न, तो प्रेम से सुधरता है। इन सबको मैं सुधारता हूँ न, वह प्रेम से सुधारता हूँ। यह हम
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प्रेम
प्रेम से ही कहते हैं न ! प्रेम से कहते हैं, इसलिए बात बिगड़ती नहीं और सहज द्वेष से कहें कि वह बात बिगड़ जाती है। दूध में दही पड़ा न हो और वैसे ही ज़रा हवा लग गई, तब भी उस दूध का दही बन जाता है।
इसलिए प्रेम से सबकुछ बोल सकते हैं। जो प्रेमवाला मनुष्य है न, वह सबकुछ बोल सकता है। यानी हम क्या कहना चाहते हैं? प्रेमस्वरूप हो जाओ तो यह जगत् आपका ही है। जहाँ बैर हो, वहाँ बैर में से धीरेधीरे प्रेमस्वरूप कर डालो। बैर से यह जगत् इतना अधिक रफ दिखता है। देखो न यहाँ प्रेमस्वरूप, किसीको जरा भी बुरा लगता नहीं और कैसा आनंद सभी करते हैं !
कदर माँगे वहाँ प्रेम कैसा?
बाकी, प्रेम देखने को नहीं मिलेगा इस काल में। जिसे सच्चा प्रेम कहा जाता है न, वह देखने को ही नहीं मिलेगा। अरे एक व्यक्ति मुझे कहता है, 'इतना अधिक मेरा प्रेम है, तब भी ये तिरस्कार करते हैं।' मैंने कहा, 'नहीं है यह प्रेम प्रेम का तिरस्कार कोई करता ही नहीं।'
प्रश्नकर्ता: आप जिस प्रेम की बात करते हैं, उसमें प्रेम की अपेक्षाएँ होती हैं क्या?
दादाश्री : अपेक्षा ? प्रेम में अपेक्षा नहीं होती। दारू पीता हो उस पर भी प्रेम हो और दारू नहीं पीता हो उस पर भी प्रेम होता है। प्रेम में अपेक्षा नहीं होती। प्रेम सापेक्ष नहीं होता ।
प्रश्नकर्ता: पर हर एक मनुष्य को, मेरे लिए दो शब्द अच्छे बोलें, ऐसी कदर की हमेशा इच्छा होती है। किसी को गाली सहन करना अच्छा नहीं लगता।
दादाश्री : उसकी कदर करे ऐसी आशा रखे तब वह प्रेम ही नहीं है। वह सब आसक्ति है। वह सब मोह ही है।
लोग प्रेम की आशा रखते हैं वे मूर्ख हैं सारे, फूलिश हैं। आपका