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प्रेम
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एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि, 'इन चाचा को मैं रुलाऊँ?' मैंने कहा, 'किस तरह रुलाओगे? इतनी उमर में तो नहीं रोएँगे।' तब वे कहते हैं, 'देखो, वे कैसे सेन्सिटिव हैं !' फिर वह भतीजा बोला, 'क्या चाचा चाची की तो बात ही मत पूछो। क्या उनका स्वभाव!' ऐसा वह बोल रहा था, तब वे चाचा वास्तव में रो पड़े ! अरे, कैसे ये घनचक्कर! साठ वर्ष की उमर में अभी पत्नी के लिए रोना आता है?! ये तो किस तरह के घनचक्कर हो ? यह प्रजा तो वहाँ सिनेमा में भी रोती है न? उसमें कोई मर गया हो तो देखनावाला भी रो उठता है।
प्रश्नकर्ता : तो वह आसक्ति छूटती क्यों नहीं?
दादाश्री : वह तो नहीं छूटती। 'मेरी, मेरी' करके किया है न वह 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' उसका जाप करें तब बंद हो जाए। वह तो जो पेच घुमाए हैं, तो वे छोड़ने ही पड़ेंगे न !
मतभेद बढ़े, वैसे प्रेम बढ़े?
न ?
मतभेद होता है या नहीं पत्नी के साथ? वाइफ के साथ मतभेद ? प्रश्नकर्ता: मतभेद के बिना तो हसबेन्ड- वाइफ कहलाते ही नहीं
दादाश्री : हैं, ऐसा ! ऐसा है, ऐसा नियम होगा? किताब में ऐसा नियम लिखा होगा कि मतभेद पड़े तभी हसबेन्ड और वाइफ कहलाते हैं? थोडें बहुत मतभेद होते हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता: हाँ।
दादाश्री : तो फिर हसबेन्ड और वाइफ कम होता जाता है, नहीं?
प्रश्नकर्ता: प्रेम बढ़ता जाता है।
दादाश्री : प्रेम बढ़ता जाए वैसे-वैसे मतभेद कम होते जाते हैं,
नहीं?
प्रेम
प्रश्नकर्ता: जितने मतभेद बढ़ते जाएँ, जितने झगड़े बढ़ते जाएँ, उतना प्रेम बढ़ता जाता है।
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दादाश्री : हाँ। वह प्रेम नहीं बढ़ता, वह आसक्ति बढ़ती है। प्रेम तो जगत् ने देखा ही नहीं। कभी भी प्रेम शब्द देखा ही नहीं जगत् । ये तो आसक्तियाँ हैं सभी प्रेम का स्वरूप ही अलग प्रकार का है। यह आप मेरे साथ बात कर रहे हो न, यह अभी आप प्रेम देख सकते हो, आप मुझे झिड़को, तब भी आपके ऊपर प्रेम रखूँगा । तब आपको लगेगा कि ओहोहो ! प्रेमस्वरूप ऐसे होते हैं। बात सुनने में फायदा है कुछ यह ?
प्रश्नकर्ता पूरापूरा फायदा है।
दादाश्री : हाँ, सावधान हो जाना। नहीं तो मूर्ख बन गए समझो। और प्रेम होता होगा? आपमें है प्रेम, कि उसमें हो? अपने में प्रेम हो तो सामनेवाले में हो। अपने में प्रेम नहीं है, और सामनेवाले में प्रेम ढूंढते हैं हम कि 'आपमें प्रेम नहीं दिखता?' मुए, प्रेम ढूंढता है? वह प्रेमी नहीं है! यह तो प्रेम ढूंढता है? ! सावधान हो जा, अभी प्रेम होता होगा? जो जिसके शिकंजे में आता है उसे भोगता है, लूटबाजी करता है।
इसमें प्रेम कहाँ रहा?
पति और पत्नी के प्रेम में पति यदि कमाकर न लाए तो प्रेम का पता चल जाए। बीवी क्या कहेगी, 'क्या चूल्हे में मैं तुम्हारा पाँव रखूँ ?' पति कमाता न हो तो बीवी ऐसा न बोले? उस घड़ी उसका प्रेम कहाँ गया? प्रेम होता होगा इस जगत् में? यह तो आसक्ति है । यदि यह खानेपीने का सब हो तो वह प्रेम (!) दिखता है और पति भी यदि बाहर कहीं फँसा हुआ हो तो वह कहेगी कि, 'आप ऐसा करोगे तो मैं चली जाऊँगी।' यानी पत्नी ऊपर से पति को झिड़कती है। वह तो बिचारा गुनहगार है, इसलिए नरम पड़ जाता है और इसमें क्या प्रेम करने जैसा है फिर ? यह तो जैसे-तैसे करके गाड़ी धकेलनी है। खाने-पीने का बीवी बना दे और हम पैसा कमाकर लाएँ हैं। इस तरह जैसे-तैसे करके गाड़ी आगे चली मियाँ- बीबी की !