________________
२०
प्रेम दादाश्री : शुद्ध प्रेम किसी भी जगह होता ही नहीं दुनिया में। यह सारा मोह के लिए ही रोते हैं। स्वार्थ के बगैर तो यह दुनिया है ही नहीं।
और स्वार्थ है, वहाँ मोह है। माँ के साथ भी स्वार्थ है। लोग ऐसा समझते हैं कि माँ के साथ शुद्ध प्रेम था। पर स्वार्थ के बिना तो माँ भी नहीं। पर वह लिमिटेड स्वार्थ है इसीलिए प्रशंसा की गई है उसकी, कम से कमलिमिटेड स्वार्थ है। बाकी, वह भी मोह का ही परिणाम है।
प्रश्नकर्ता : वह ठीक है। पर माँ का प्रेम तो नि:स्वार्थ हो सकता
है न?
लगता है कि मेरे पेट से जन्मा है और उसको ऐसा लगता है कि माँ के पेट से मैं जन्मा हैं। इतनी अधिक एकता हो गई है। माँ ने जो खाया उससे ही उसका खून बनता है। इसलिए यह एकता का प्रेम है एक प्रकार का। फिर भी वास्तव में रियली स्पीकिंग प्रेम नहीं है यह। रिलेटिवली स्पीकिंग प्रेम है। इसलिए सिर्फ प्रेम किसी जगह हो तो माँ के साथ होता है। वहाँ प्रेम जैसी कोई निशानी दिखती है। परन्तु वह भी पौद्गलिक प्रेम है और वह प्रेम है वह भी कितने भाग में? कि जब मदर को अच्छी लगे ऐसी चीज़ हो, उस पर बेटे धावा बोलें तो दोनों लड़ते हैं, तब प्रेम फ्रेक्चर हो जाता है। बेटा अलग रहने चला जाता है। कहेगा, 'माँ, तेरे साथ नहीं रास आएगा।'
यह रिलेटिव सगाई है, रियल सगाई नहीं है। सच्चा प्रेम हो न तो बाप मर गया न, उसके साथ बेटा बीस वर्ष का हो वह भी साथ में जाए। उसका नाम प्रेम कहलाता है। ऐसे जाता है सही एक भी लड़का?!
प्रश्नकर्ता : कोई गया नहीं।
दादाश्री : अपवाद नहीं है कोई? बाप मर जाए तब लड़के को 'मेरे बापू मर गए', उसका इतना अधिक असर हो और वह भी उसके साथ मर जाने को तैयार हो जाए। ऐसी यहाँ मुंबई में घटना हुई है?
दादाश्री : होता ही है नि:स्वार्थ काफी कुछ अंशों में। इसीलिए तो माँ के प्रेम को प्रेम कहा है।
प्रश्नकर्ता : फिर भी आप उसे 'मोह है' ऐसा कहते हैं?
दादाश्री : ऐसा है, कोई कहेगा, 'भाई, प्रेम जैसी वस्तु इस दुनिया में नहीं है?' तो प्रमाण के तौर पर दिखाना हो तो माँ का प्रेम, वह प्रेम है। ऐसा दिखा सकते है कि यहाँ कुछ प्रेम है। बाकी, दूसरी बात में कोई माल नहीं। बेटे पर माँ का प्रेम होता है और अभी दसरे सब प्रेम से अधिक यह प्रेम प्रशंसा करने जैसा है। क्योंकि उस प्रेम में बलिदान है।
प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : तब शमशान में क्या करते हैं वहाँ जाकर फिर? प्रश्नकर्ता : जला देते हैं।
दादाश्री : ऐसा? फिर आकर खाता नहीं होगा, नहीं? खाता है न! तो यह ऐसा है, औपचारिकता है, सब जानते हैं कि यह रिलेटिव सगाई है। गया वह तो गया। फिर घर आकर चैन से खाते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर कोई व्यक्ति मर जाए तो हम उसके प्रति मोह के कारण रोते हैं या शुद्ध प्रेम होता है, इसलिए रोते हैं?
प्रश्नकर्ता : मदर की जो इस प्रकार की हक़ीक़त है, तो पिताजी का क्या भाग होता है, ऐसा प्रेम.....
दादाश्री : पिताजी का मतलबवाला प्रेम। मेरा नाम रौशन करे वैसा है, कहेगा। सिर्फ एक माँ का ही थोडा-सा प्रेम, वह भी थोडा-सा ही वापिस । वह भी मन में होता है कि बड़ा होगा, मेरी चाकरी करेगा और श्राद्ध करेगा, तब भी बहुत हो गया मेरा। एक लालच है, कुछ भी उसके पीछे लालच है वहाँ प्रेम नहीं है। प्रेम वह वस्तु ही अलग है। अभी आप हमारा प्रेम देख रहे हो, पर यदि समझ आए तो। इस दुनिया में कोई चीज़ मुझे नहीं चाहिए, आप लाखों डॉलर दो या लाखों पाउन्ड दो! पूरे जगत् का सोना दो तो मेरे काम का नहीं है। जगत् की स्त्री संबंधी मुझे विचार