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________________ अनुक्रमणिका पेज नं. निमित्तों के अधीन निकली हुई है, उस वाणी के संकलन में भासित क्षतियों को क्षम्य मानकर ज्ञानी पुरुष की वाणी का अंतर आशय प्राप्त करें यही अभ्यर्थना! ज्ञानी पुरुष की जो वाणी निकली हुई है, वह नैमित्तिक रूप से जो मुमुक्षु-महात्मा सामने आये उसके समाधान के लिए निकली होती है और वह वाणी जब ग्रंथरूप में संकलित हो तब कभी कुछ विरोधाभास लगे। जैसे कि एक प्रश्नकर्ता की आंतरिक दशा के समाधान के लिए ज्ञानी पुरुष द्वारा 'प्रतिक्रमण यह जागृति है और अतिक्रमण डिस्चार्ज है' ऐसा प्रत्युतर प्राप्त हो और दूसरे सूक्ष्म जागृति की दशा तक पहुँचे महात्मा को सूक्ष्मता में समझाने के लिए ज्ञानी पुरुष ऐसा खुलासा करें कि 'अतिक्रमण डिस्चार्ज है और प्रतिक्रमण भी डिस्चार्ज है, डिस्चार्ज को डिस्चार्ज से भाँजना है।' तो दोनों खुलासा नैमित्तिक तौर पर यथार्थ ही हैं। लेकिन सापेक्ष तौर पर विरोधाभासी लगे। ऐसे प्रश्नकर्ता की दशा में फर्क होने की वजह प्रत्युत्तर में विरोधाभास नजर आये फिर भी सैद्धांतिक तौर पर उसमें विरोधाभास है ही नहीं। सज्ञ पाठकों को ज्ञान वाणी की सक्ष्मता आत्मसात करके बात को समझे इसलिए साहजिक रूप से यह सूचित किया गया है। जय सच्चिदानंद नोंध : 1. इस पुस्तक में स्वरूप ज्ञान नहीं पाये हुओं के प्रश्न मुमुक्षु के तौर पर पूछे गये हैं, उस पूरे शीर्षक के नीचे की बात उसकी ही समझे। उसके सिवा प्रश्नकर्ता के तौर पर पूछनेवाले अक्रम मार्ग के स्वरूप ज्ञान प्राप्त महात्माओं के हैं ऐसा सझ पाठक समझें। जहाँ जहाँ चन्दुभाई नाम का प्रयोग किया गया है, वहाँ वहाँ सुज्ञ पाठक स्वयं को समझे। १. प्रतिक्रमण का यथार्थ स्वरूप २. प्रत्येक धर्म प्ररूपित प्रतिक्रमण ३. नहीं है 'वे' प्रतिक्रमण महावीर के ४. अहो! अहो ! वह जागृत दादा ५. अक्रम विज्ञान की रीत ६. रहें फूल, जायें काँटे... ७. हो शुद्ध व्यापार ८. 'ऐसे' टूटेगी शृंखला ऋणानुबंध की ९. निर्लेपता, अभाव से फाँसी तक १०. टकराव के प्रतिपक्ष में ११. पुरूषार्थ - प्राकृत दुर्गुणों के सामने... १२. छूटे व्यसन, ज्ञानी के कहे अनुसार १३. विमुक्ति, आर्त-रौद्र ध्यान से १४. निकाले कषाय की कोठरी में से १५. भाव अहिंसा की डगर पर... १६. दु:खदायी बैर की वसूली... १७. मूल, अभिप्राय का १८. विषय विकार को जीते वह राजाओं का राजा १९. झूठ के आदी को २०. जागृति, वाक्धारा बहे तब... २१. प्रकृति दोष छूटे ऐसे... २२. निपटारा, चिकनी फाइलों से २३. मन मनाये मातम तब ... २४. आजीवन बहाव में बहते को तारे ज्ञान २५. प्रतिक्रमण की सैद्धांतिक समझ
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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