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संपादकीय
का प्रयोग कैसे करें कि जिससे जल्दी मोक्ष तक पहुँच पाये? कायरता किसे कहना? पापी पुण्यशाली हो सकें? कैसे हो सकें?
इस आर.डी.एक्स जैसी अगन में सारी जिंदगी जलती रही, उसे कैसै बुझायें? रात-दिन पत्नी का प्रभाव, पुत्र-पुत्रियों का ताप और पैसे कमाने का उत्पात-इन सभी तापों से कैसे शाता प्राप्त करके नैया पार उतारें?
गुरु-शिष्यों के बीच, गुरुमाएं और शिष्यायों के बीच, निरंतर कषायों के फेरे में पड़े हए उपदेशक कैसे लौट सकें? अनाधिकार की लक्ष्मी और अनाधिकार की स्त्रियों के पीछे मन-वचन-वर्तन या दृष्टि से दोष हए तो उसका तिर्यच अथवा नर्कगति के सिवा कहाँ स्थान हो सकता है? उसमें से कैसे छुटकारा पाये? उसमें सचेत रहना हो तो कैसे रह सके
और मुक्त हो सके? ऐसे अनेक उलझनभरे सनातन प्रश्नों का हल क्या हो सके?
-डॉ. नीरूबहन अमीन हृदय से मोक्षमार्ग पर जानेवालों को. पल पल सताते कषायों को काटने, मार्ग पर आगेकूच करने, कोई अचूक साधन तो चाहिए कि नहीं चाहिए? स्थूलतम से सूक्ष्मतम टकराव कैसे टालें? हमें या हम से अन्यों को दुःख हो तो उसका निवारण क्या? कषायों की बममारी को रोकने के लिए या वह फिर से नहीं हो उसका क्या उपाय? इतना धर्म किया, जप, तप, अनशन, ध्यान, योगादि किये, फिर भी मन-वचन-काया से होनेवाले दोष क्यों नहीं रुकते? अंतरशांति क्यों नहीं होती? कभी निजी दोषों के नज़र आने के पश्चात् उसका क्या करना? उन्हें किस प्रकार हटाना? मोक्षमार्ग पर आगे बढने, और संसार मार्ग में भी सुख-शांति, मंद कषाय और प्रेमभाव से जीने के लिए कोई ठोस साधन तो होना चाहिए न? वीतरागों ने धर्मसार में जगत् को क्या बोध किया है? सच्चा धर्मध्यान कौन-सा है? पाप से वापस लौटना हो तो उसका कोई अचूक मार्ग है क्या? अगर है तो नज़र क्यों नहीं आता?
धर्मशास्त्रों से बहुत पढ़ा जाता है, फिर भी वह जीवन में आचरण में क्यों नहीं आता? साधु, संत, आचार्य, कथाकार इतना उपदेश करते हैं फिर भी क्या कमी रहती है उसे चरितार्थ करने में? प्रत्येक धर्म में, प्रत्येक साधु-संतो की जमातों में कित-कितनी क्रियाएँ होती हैं? कित-कितने व्रत, जप, तप, नियम हो रहे हैं, फिर भी क्यों फलदायक नहीं होता? कषाय क्यों कम नहीं होते? दोषों का निवारण क्यों नहीं होता? क्या, इसकी जिम्मेदारी गद्दी पर बैठे उपदेशकों की नहीं होती? ऐसा यह जो लिखा जाता है वह द्वेष या बैरभाव से नहीं लेकिन करूणाभाव से हैं, फिर भी उसे धोने के लिए कोई उपाय है या नहीं? अज्ञान दशा में से ज्ञान दशा और अंतत: केवलज्ञान स्वरूप दशा तक पहुँचने के लिए ज्ञानियों ने, तीर्थंकरों ने क्या निर्देश दिया होगा? ऋणानुबंध वाले व्यक्तियों के साथ राग या तो द्वेष के बंधनों से मुक्त होकर वीतरागता कैसे प्राप्त हो?
'मोक्ष का मार्ग है वीर का, नहीं कायर का काम' लेकिन वीरता
प्रत्येक मनुष्य अपने जीवनकाल दरमियान कभी-कभी संयोगो के दबाव में ऐसी परिस्थिति में फँस जाता है कि संसार व्यवहार में भूलें नहीं करनी हो फिर भी भूलों से मुक्त नहीं हो सकता, ऐसी परिस्थिति में हृदय से सच्चे पुरुष लगातार उलझन में रहते हैं, उनको भूलों से छुटकारा पाने का और जीवन जीने का सच्चा मार्ग मिल जाये, जिससे अपने आंतरिक सुख-चैन में रहकर प्रगति कर सके, उसके लिए कभी भी प्राप्त नहीं हुआ हो ऐसा अध्यात्म विज्ञान का एकमेव अचूक आलोचना-प्रतिक्रमणप्रत्याख्यान रूपी हथियार तीर्थंकरों ने, ज्ञानीओं ने जगत् को अर्पण किया है। इस हथियार के द्वारा दोषरूपी विकसित विशाल वृक्ष को मुख्य जड़ समेत निर्मूलन करके अनंत जीव मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कर सके हैं। ऐसे मुक्ति देनेवाले यह प्रतिक्रमण रूपी विज्ञान का रहस्योद्घाटन यथार्थरूप से ज्यों का त्यों प्रकट ज्ञानी पुरुष श्री दादा भगवान ने केवल ज्ञान स्वरूप में देखकर कही गई वाणी द्वारा किया है, जो प्रस्तुत ग्रंथ में संकलित हुई है, जो सज्ञ पाठक को आत्यंतिक वे सारी बातें कल्याण के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
ज्ञानी पुरुष की वाणी द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव तथा भिन्न-भिन्न