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प्रतिक्रमण
खोज-खोजकर प्रतिक्रमण करना। जितने लोगों को रगड़-रगड़ किया है वह फिर धोना पड़ेगा न? बाद में ज्ञान प्रकट होगा ।
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फिर इस जनम, पिछले जनम पिछले संख्यात, पिछले असंख्यात जन्मों में, गत अनंत जन्मों में दादा भगवान की साक्षी में, कोई भी धर्म की, साधु आचार्यों की जो जो अशातना, विराधना करी - कराई हो तो उसके लिए क्षमा माँगता हूँ। दादा भगवान की साक्षी में क्षमा माँगता हूँ। किंचित्मात्र अपराध नहीं हो ऐसी शक्ति दीजिए। ऐसे सभी धर्मों को लेकर करें।
अरे, उस समय अज्ञान दशा में हमारा अहंकार भारी, 'फलाँ ऐसेवैसे' तब तिरस्कार, तिरस्कार, तिरस्कार ही तिरस्कार .... और किसी की तारीफ़ भी करे। एक की इस ओर तारीफ़ करे और दूसरे का तिरस्कार करे। फिर १९५८ में ज्ञान हुआ तब से 'ए. एम. पटेल' से कह दिया कि, 'ये जो तिरस्कार किये हैं, अब उन्हें साबून लगाकर धो डालिए', तब प्रत्येक को खोज - खोज कर सभी का बार-बार धोता रहा। इस ओर के पड़ोसी, उस ओर के पड़ोसी, इस ओर के कुटुम्बी, मामा, चाचा, सभी के साथ तिरस्कार हुए थे, उन सभी को धो डाला।
प्रश्नकर्ता : तो मन से प्रतिक्रमण किया, रूबरू जाकर नहीं?
दादाश्री : मैंने अंबालाल पटेल से कहा कि यह आपने उलटे काम किये हैं, वे सब मुझे दिखाई पड़ते हैं। अब वे सभी उलटे किये काम को धो डालिये! इस पर उन्हों ने क्या करना शुरू किया? कैसे धोयें? तब मैंने समझाया कि उसे याद कीजिए। नगीनदास को गालियाँ दी, सारी जिन्दगी डाँटा, तिरस्कार किये, उन सभी का वर्णन करके, और 'हे नगीनदास के मन-वचन-काया का योग, द्रव्यकर्म-भावकर्म- नोकर्म से भिन्न प्रकट शुद्धात्मा भगवान ! नगीनदास के भीतर बैठे शुद्धात्मा भगवान! यह नगीनदास की बार - बार माफ़ी माँगता हूँ, वह दादा भगवान की साक्षी में माफ़ी माँगता हूँ। फिर से ऐसे दोष नहीं करूँगा।' अर्थात् आप ऐसा कीजिए। फिर आप सामनेवाले के चेहरे पर परिवर्तन देख लेना। उसका चहेरा बदला हुआ नज़र आयेगा । यहाँ आप प्रतिक्रमण करें और वहाँ परिवर्तन होने लगे ।
प्रतिक्रमण
हमने कितना धोया तब बहीखाता चुकता हुआ। हम तो लम्बे अरसे से खुद धोते आये हैं तब बहीखाता चुकता हुआ। आपको तो मैंने राह दिखाई, इसलिए जलदी छूट जायेगा ।
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हम तो प्रतिक्रमण कर लें। इसलिए जिम्मेदारी से मुक्त हो गये! मुझे शुरू-शुरू में सभी लोग 'ऐटेक' करते थे न! पर फिर सब थक गये। यदि हमारा प्रतिआक्रमण रहेगा तो सामनेवाला नहीं थकेगा। यह संसार किसी को भी मोक्ष में जाने दे ऐसा नहीं है। इतनी सारी बुद्धिवाला संसार है। इसमें संभलकर चलें, समेटकर चलें तो मोक्ष में जायें।
यह प्रतिक्रमण करके तो देखो, फिर आपके घर के सारे लोगों में चेन्ज (परिवर्तन) हो जाये, जादूई चेन्ज हो जाये। जादूई असर !!!
ऐसा है, जब तक सामनेवाले का दोष खुद के मन में है तब तक चैन नहीं लेने देगा। यह प्रतिक्रमण करने पर वह धुल जायेगा। राग-द्वेषवाली प्रत्येक चिकनी 'फाइल' पर उपयोग रखकर, प्रतिक्रमण करके, शुद्ध करें। राग की फाइल होने पर उसके तो प्रतिक्रमण ख़ास करने चाहिए।
हम गद्दे पर सो गयें हों और जहाँ-जहाँ कँकड़ चुभे, वहाँ से आप निकाल देंगे कि नहीं? यह प्रतिक्रमण तो, जहाँ-जहाँ चुभता हो वहीं ही करने हैं। आपको जहाँ चुभता हो वहाँ से निकाल फेंको, और उसको चुभता हो वहाँ से वह निकाल फेंके ! प्रतिक्रमण हर मनुष्य के अलग-अलग होंगे !
किसी के लिए भी अतिक्रमण हुए हो तो, सारा दिन उसके नाम के प्रतिक्रमण करने होंगे, तभी खुद की मुक्ति होगी। यदि दोनों ही आमनेसामने प्रतिक्रमण करेंगे तो जल्दी मुक्त होंगे। पाँच हजार बार आप प्रतिक्रमण करें और पाँच हजार बार सामनेवाला प्रतिक्रमण करे तो जल्दी छुटकारा होगा। किंतु यदि सामनेवाला नहीं करे और आपको छूटना ही हो तो, दस हजार बार प्रतिक्रमण करने होंगे।
प्रश्नकर्ता: जब ऐसा कुछ रह जाता है तो मन में खटकता रहता है कि यह रह गया।