________________
प्रतिक्रमण
५९
अधीन नहीं हैं। जो आत्मा के अधीन होगा वह ऐसा सामने नहीं बोलेगा । अतः कषाय के अधीन मनुष्य किसी भी तरह का गुनाह करे वह क्षमा के पात्र है। वह खुद के अधीन ही नहीं बेचारा ! वह कषाय करे उस समय हमें ढीला छोड़ देना चाहिए। वरना उस घड़ी सब उलट-पुलट कर देगा । कषाय के अधीन माने उदयकर्म के अधीन, जैसा उदय होगा वैसा फिरेगा।
१७. मूल, अभिप्राय का
सामनेवाला कैसा भी भाव, अच्छा या बुरा भाव लेकर आपके पास आया हो, लेकिन उसके साथ कैसे पेश आना वह आपको देखना है । सामनेवाले की प्रकृति टेढ़ी हो तो उस टेढ़ी प्रकृति के साथ माथापच्ची नहीं करनी चाहिए। प्रकृति से ही वह चोर हो, हम दस साल से उसकी चोरी देखतें हों और वह आकर हमारे पैर छूए तो क्या हमें उसका विश्वास करना चाहिए ? नहीं, चोरी करनेवाले को हम क्षमा कर दें कि जा तुझे छोड़ दिया, हमारे मन में तेरे लिए कोई दुर्भाव नहीं है, लेकिन उसका विश्वास नहीं कर सकते और फिर उसका संग भी नहीं कर सकते। यद्यपि संग किया और फिर विश्वास नहीं किया तो वह भी गुनाह है। वास्तव में संग करना ही नहीं चाहिए और किया तो उसके प्रति पूर्वग्रह नहीं रखना चाहिए। जो होगा वह सही ऐसा रखें।
प्रश्नकर्ता: फिर भी उलटा अभिप्राय हो जाये तो क्या करना ? दादाश्री : हो जाये तो माफ़ी माँग लें। जिसके लिए उलटा अभिप्राय हो गया हो उसकी माफ़ी माँग लें।
प्रश्नकर्ता: अच्छा अभिप्राय देना या नहीं देना?
दादाश्री : कोई अभिप्राय ही मत दें। और अगर दे दिया तो उसे मिटा देंगे हम मिटाने का साधन हैं, आपके पास। आलोचना-प्रतिक्रमणप्रत्याख्यान का अमोघ 'शस्त्र'।
प्रश्नकर्ता: गाढ़ अभिप्राय कैसे मिटाये ?
६०
प्रतिक्रमण
दादाश्री : जब से तय किया कि मिटाने हैं, तब से वे मिटने शुरू हो जायेंगे। बहुत गाढ़ हो उन्हें प्रतिदिन दो-दो घंटे उखाड़ते रहें तो वे मिट जायेंगे। आत्मप्राप्ति के पश्चात् पुरूषार्थ धर्म प्राप्त हुआ कहलाये, और पुरूषार्थ धर्म पराक्रम तक पहुँच सके, जो कैसे भी अवरोध को उखाड़कर फेंक सके। किंतु एक बार समझ लेना चाहिए कि इस कारण से यह पैदा हुआ है, फिर उसके प्रतिक्रमण करें।
अभिप्राय न बांधा जाये इतने जरा सावध रहिए। सबसे ज्यादा संभलना है अभिप्राय से और कोई हर्ज नहीं है। किसी को देखने के पहले ही अभिप्राय बांधा जाये, यह संसार जागृति इतनी भारी है कि अभिप्राय बांधा ही जाये। इसलिए अभिप्राय होते ही उसे मिटा दें। अभिप्राय के बारे में बहुत सावधान रहने की जरूरत है। अर्थात् अभिप्राय बंधेगे जरूर, पर तुरन्त हमें मिटा देना चाहिए। प्रकृति अभिप्राय बांधती है और प्रज्ञाशक्ति अभिप्राय से छूड़ाती रहती है। प्रकृति अभिप्राय बांधती रहेगी, कुछ समय तक बांध बांध करेगी लेकिन हम उन्हें मिटाते रहें। अभिप्राय बंधा गया उसका तो यह सब झंझट है।
प्रश्नकर्ता: अभिप्राय बंधा जाये, उसे मिटाना कैसे ?
दादाश्री : अभिप्राय मिटाने के लिए हमें क्या करना चाहिए कि, 'यह भाईजी के लिए मेरा ऐसा अभिप्राय बंधा गया, वह गलत है, हम से ऐसा क्यों हो?' ऐसा कहने पर अभिप्राय मिट जायेगा। हम जाहिर करें कि 'यह अभिप्राय गलत है। इस भाईजी के लिए ऐसा अभिप्राय कहीं बंधा जाएगा भला? यह आप क्या कर रहे हैं?' इस तरह उस अभिप्राय को गलत करार दिया, इसलिए वह मिट जायेगा।
प्रतिक्रमण नहीं किया तो आपका अभिप्राय कायम रहा, इसलिए आप बंधन में रहें। जो दोष हुआ उसमें आपका अभिप्राय रहा। यह प्रतिक्रमण करने पर आपका अभिप्राय टूट गया। अभिप्रायों से मन पैदा हुआ है। देखिये, मुझे किसी मनुष्य के लिए कोई भी अभिप्राय नहीं है, क्योंकि एक ही बार देख लेने के बाद मैं अभिप्राय बदलता नहीं हूँ। कोई