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प्रतिक्रमण
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प्रतिक्रमण
दादाश्री : तो उसका प्रतिक्रमण कर लेना कि यह जागृति नहीं रही, उसके लिए प्रतिक्रमण करता हूँ। हे दादा भगवान, मुझे क्षमा करना।
प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने का बहुत देर के बाद याद आये कि, इस मनुष्य का प्रतिक्रमण करना था।
दादाश्री: लेकिन याद तो आता है न? सत्संग में अधिक बैठने की जरूरत है। सब कुछ पूछ लेना चाहिए, बारीकी से। यह तो विज्ञान है। सब कुछ पूछ लेने की आवश्यकता है।
प्रश्नकर्ता : भीतर उत्पात होता हो, तब 'शूट ऑन साइट' उसका निकाल करना नहीं आये, लेकिन शाम को दस-बारह घंटे पश्चात् ऐसा विचार आये कि, यह सब गलत हुआ तो उसका निकाल हो जाता है क्या? देर से ऐसा हो तो?
दादाश्री : हाँ, देर से हो तो भी उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। गलत हुआ फिर प्रतिक्रमण करना कि, हे दादा भगवान ! यह मेरी भूल हुई। अब फिर से नहीं करूँगा।
तुरन्त नहीं होता तो दो घंटे बाद करें। अरे, रात को करें, रात को याद करके करें। रात को याद करके नहीं हो सकता कि आज किस से टकराव में आये? अरे, सप्ताह के अंत में करें। सप्ताह के बाद सभी साथ में कीजिए। सप्ताह में जितने अतिक्रमण हुए हो, उन सभी का इकट्ठा हिसाब कीजिए।
प्रश्नकर्ता : किंतु वह तुरन्त होना चाहिए न?
दादाश्री : तुरन्त हो जाये उसके समान तो कोई बात ही नहीं। हमारे यहाँ तो बहुतेरे सभी 'शूट ऑन साइट' ही करते हैं। देखे वहाँ गोली मारिए । देखा वहाँ गोली मारी।
प्रश्नकर्ता : मैं जब दादा का नाम लूँ या आरती करूँ तो भी मन कहीं और भटकता है। फिर आरती में कुछ और ही गाता हूँ। फिर पंक्तियाँ अलग ही गाने लगूं। फिर तन्मयाकार हो जाऊँ। विचार आये उसमें तन्मयाकार हो जाता हूँ। फिर थोड़ी देर के बाद उसी में वापस आ जाता
दोष दिखना आसान वस्तु नहीं है! फिर हम तो एकदम खुला कर देते हैं, किंतु उसे दृष्टि हो कि मुझे देखने हैं तो नज़र आया करें। अर्थात् खुद को भोजन करते समय थाली से हाथ तो ऊपर उठाना होगा न? ऐसे ही खाना मेरे मुँह में जाये! सिर्फ ऐसी इच्छा करने से मुँह में थोड़ा जायेगा? प्रयत्न तो करना ही चाहिए न!
मनुष्य से दोष होना स्वाभाविक है। उससे विमक्त होने का रास्ता क्या? अकेले 'ज्ञानी पुरुष' ही वह रास्ता दिखायें, 'प्रतिक्रमण'।
भीतर प्रतिक्रमण अपने आप होता रहे। लोग कहते हैं, 'क्या अपने आप प्रतिक्रमण हो जाता है?' मैंने कहा, हाँ. तब ऐसा कैसा मशीन मैंने लगाया है? जिससे सारा प्रतिक्रमण शुरू हो जाता है। तेरी वृत्ति चौकस हो तब तक सब तैयार हो।
दादाश्री : वह हकीकत है दादाजी, प्रतिक्रमण साहजिक हुआ करता है और दूसरा यह विज्ञान ऐसा है कि जरा-सा भी द्वेष नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : यह भाई कहता है कि मुझ जैसे से प्रतिक्रमण नहीं होता वह क्या कहलाये?
दादाश्री : वे तो भीतर होतें हो मगर ख़याल नहीं आता। अत: एक बार ऐसा बोलने पर कि 'मुझ से नहीं होते', वह बंद हो जाये। जैसा भजन वैसी भक्ति, वह तो भीतर होती रहे। कुछ समय के बाद होगी।
दादाश्री : ऐसा है न, उस दिन प्रतिक्रमण करना। विचार आये तो उसमें कोई हर्ज नहीं। विचार आने पर हम 'चन्दुलाल' को अलग देख सकते हैं, कि चन्दुलाल को विचार आते हैं, ये सब देख सकते हैं तो 'हम' और वे दोनों अलग ही हैं। पर उस समय जरा कच्चे पड़ जाते है।
प्रश्नकर्ता : उस समय जागृति ही नहीं रहती।