________________
ह
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
और मन फरियाद करे कि 'कितना सारा बोल गए!' तब मन से कहो, 'सो जा, वे घाव अभी भर जाएँगे' ठीक हो जाएँगे तुरन्त... कंधा थपथपायें तो सो जाए। तेरे घाव भर गये न सब, नहीं? जो घाव पड़े थे वे?
प्रश्नकर्ता : झगड़ा हो तब भी (भीतर) भरा हुआ माल निकलता
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
कुत्ते, जानवर सभी डिवोर्सवाले हैं और ये फिर मनुष्य भी उसमें आये तो फिर फर्क क्या रहा? फिर तो मनुष्य बीस्ट (जानवर) जैसा ही हो गया। हमारे हिन्दुस्तान में तो एक शादी के बाद दूसरी शादी नहीं करते थे। यदि पत्नी की मृत्यु हो तो फिर दूसरी शादी भी नहीं करें, ऐसे मनुष्य थे! कैसे पवित्र मनुष्य जन्मे थे!
अरे, तलाक़ लेनेवाले का मैं घण्टेभर में मेल करा दूं फिर से! तलाक़ लेना हो, उसे मेरे पास लाओ तो मैं एक घण्टे में ठीक कर दूं। फिर वे दोनों साथ रहेंगे। डर मात्र नासमझी का है। कई अलग हुओं का ठीक हो गया।
ये तो हमारे संस्कार हैं। लड़ते-झगड़ते दोनों को अस्सी साल हो जाएँ, फिर भी मरने के बाद तेरहवें दिन शैय्यादान करते हैं। शैय्यादान में चाचा को यह भाता था और यह पसंद था, चाची सब बम्बई से मँगाकर रखती हैं। एक लड़का अस्सी साल की चाची से कहता है, 'चाचीजी, चाचा ने तो आपको छह महीने पहले गिरा दिया था। उस वक्त तो आप चाचा के बारे में उलटा बोलती थीं।' 'फिर भी, ऐसे पति नहीं मिलेंगे' कहती है। ऐसा कहा उस बुढिया ने। सारी ज़िन्दगी के अनभव में से हँढ निकालती है कि 'पर वे दिल के बहुत अच्छे थे। यह प्रकृति टेढ़ी थी पर भीतर दिल के अच्छे थे...'
लोग देखें ऐसा हमारा जीवन होना चाहिए। हम इन्डियन हैं, हम विदेशी नहीं हैं। हम स्त्री को निबाह लें और स्त्री हमें निबाहे. ऐसा करते करते अस्सी साल तक चले। जबकि वह (परदेशन) तो एक घण्टा भी नहीं निभाये और वह (परदेशी) भी एक घण्टा नहीं निभाये।
सब सबकी प्रकृति के पटाखे फूट रहे हैं। ये पटाखे कहाँ से आए? प्रश्नकर्ता : सबकी अपनी प्रकृति के हैं।
दादाश्री : हम समझें कि 'यह फूटेगा' तब फुस हो गया हो! फुस्स.... फुस हो जाता है।
दादाश्री : (अज्ञानता में) झगड़ा हो तब भीतर नया माल घुस जाता है लेकिन यह हमारा ज्ञान मिलने के बाद भरा हुआ माल निकलता है।
प्रश्नकर्ता : पति झगड़ा करता हो उस समय मैं प्रतिक्रमण करूँ तो?
दादाश्री : तो हर्ज नहीं। प्रश्नकर्ता : तब भरा हुआ माल निकल जाएगा न सब?
दादाश्री : तब तो सब माल निकल जाए। प्रतिक्रमण जहाँ हो वहाँ माल निकल जाता है। इस जगत में प्रतिक्रमण ही एक उपाय है।
अब पति डाँटे तब क्या करोगी? प्रश्नकर्ता : समभाव से निकाल (निपटारा) कर देने का। दादाश्री : ऐसा! चली नहीं जाओगी अब? प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : अब वे चले जाएँ तब क्या करेगी तू? मुझे तुम्हारे साथ नहीं जमेगा तब?
प्रश्नकर्ता : माफ़ी माँगकर पाँव पड़कर वापस बुला लाऊँगी।
दादाश्री : हाँ, बुला लाना। समझा-बुझाकर सिर पर हाथ रखें, सिर पर हाथ फेरकर ... ऐसा भी करना कि वे चुप हो जाएँ फिर।