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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
दादाश्री : पुरुष की किसी भी बात में दखल नहीं करनी चाहिए। 'दुकान में कितना माल आया? कितना गया? आज देर से क्यों आए?' फिर उनको कहना पड़े कि 'आज नौ बजे की गाड़ी चूक गया।' तब पत्नी कहेगी कि, 'ऐसे कैसे घूमते हो कि गाडी छूट जाती है?' फिर वह पति गुस्सा करे, उसे मन में हो कि अगर भगवान भी ऐसा पछता, तो उसको फटकारता। पर यहाँ क्या करें अब? बिना वजह दखल देते हैं। अच्छे बासमती चावल बनाते हैं और कंकड़ डालकर खाते हैं। उसमें क्या स्वाद आएगा? स्त्री-पुरुष को परस्पर हेल्प (मदद) करनी चाहिए। पति को चिंता रहती हों तो उसे चिंता नहीं हो ऐसे पत्नी को बोलना चाहिए
और पति को भी पत्नी को मुसीबत न आए ऐसा ध्यान रखना चाहिए। पति को भी समझना चाहिए कि पत्नी को घर पर बच्चे कितने परेशान करते होंगे? घर में कुछ टूट-फूट जाए तो पुरुष को शोर नहीं मचाना चाहिए। पर ये तो चीखने लगते हैं कि 'पिछले साल अच्छे से अच्छे दर्जन कप-रकाबी लाया था, वे सारे के सारे क्यों फोड डाले? सब खतम कर दिये।' इससे पत्नी को मन में होता है कि 'मैंने तोड़ डाले? मुझे क्या वे खाने थे? टूट गए सो टूट गए उसमें मैं क्या करूँ?''मी काय करूँ?' कहेगी। कुछ लेना भी नहीं, कुछ देना भी नहीं। जहाँ झगड़ने की कोई वजह नहीं वहाँ भी लड़ने लगे!
डिविज़न (विभाग) तो मैंने पहले से, छोटा था तब से कर दिये थे कि, यह रसोई खाता उसका और धंधा खाता मेरा। बचपन से मझसे घर की स्त्री धंधे का हिसाब माँगे, तो मेरा दिमाग हट जाए। क्योंकि मैं कहता, तुम्हारी लाइन नहीं। तुम विदाउट एनी कनेक्शन (बिना कोई संदर्भ) पूछती हो, कनेक्शन (संबंध) समेत होना चाहिए। वह पूछे 'इस साल कितना कमाये?' मैंने कहा, 'ऐसा तुम नहीं पूछ सकती। यह हमारी पर्सनल मेटर (निजी बात) हुई। तुम ऐसा पूछती हो तो कल सुबह अगर मैं किसी को पाँच सौ रुपये दे आऊँगा, तब तुम मेरा तेल निकाल लोगी।' किसी को पैसे दे आया तब कहोगी, 'ऐसे लोगों को पैसे बाँटते फिरोगे तो पैसे खत्म हो जाएँगे।' ऐसे तुम मेरा तेल निकालोगी, इसलिए पर्सनल मेटर में तुम्हें हस्तक्षेप नहीं करना है।
शंका जलाये सोने की लंका घर में ज्यादातर तकरारें आजकल शंका की वजह से होती हैं। यह कैसा है कि शंका की वजह से स्पंदन उठते हैं और इन स्पंदनों से लपटें निकलती हैं और अगर नि:शंक हो जाएँ न तो लपटें अपने आप ही शांत हो जाएँगी। पति-पत्नी दोनों शंकाशील होंगे तब लपटें कैसे शांत होंगी? एक नि:शंक हो तो ही छुटकारा हो सकता है। माँ-बापों की तकरार से बच्चों के संस्कार बिगड़ते हैं। बच्चों के संस्कार नहीं बिगड़े इसलिए दोनों को समझकर निबटारा लाना चाहिए। यह शंका निकाले कौन? अपना यह 'ज्ञान' तो संपूर्ण नि:शंक बनाये ऐसा है !
एक पति को अपनी वाइफ पर शंका हुई। वह बंद होगी? नहीं। वह लाइफ टाइम (आजीवन) शंका कहलाती है। काम हो गया न, पुण्यवंत (!) पुण्यवंत मनुष्य को होती हैं न! इसी तरह वाइफ को भी पति पर शंका हुई, वह भी लाइफ टाइम (आजीवन) नहीं जाती।
प्रश्नकर्ता : नहीं करनी हो फिर भी होती हैं, यह क्या है?
दादाश्री : अपनापन, स्वामित्व। मेरा पति है! पति भले हो, पति का हर्ज नहीं। मेरा कहने में हर्ज नहीं है, ममता नहीं रखनी चाहिए। 'मेरा पति' ऐसा बोलना पर ममता मत रखना।
इस दुनिया में दो चीजें रखनी। ऊपर ऊपर से विश्वास खोजना और ऊपर ऊपर से शंका करना। गहराई में मत उतरना। और अंत में तो, विश्वास खोजनेवाला मेड (पागल) होगा, मेन्टल हॉस्पिटल (पागलखाने)में लोग धकेल देंगे। इस पत्नी से एक दिन कहें, 'तू शुद्ध है इसका क्या प्रमाण है?' तब वाइफ क्या कहेगी, 'मुए ये तो जंगली है।'
ये लड़कियाँ बाहर जाती हों, पढ़ने जाती हों तब भी ऐसी शंका! 'वाइफ' पर भी शंका ! ऐसे सब दगा! घर में भी दगा ही है न, इस समय ! इस कलियुग में खुद के घर में ही दगा होता है। कलियुग अर्थात् दो का काल। कपट और दगा, कपट और दगा, कपट और दगा! उसमें सुख