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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार है वहाँ से मनुष्यता चली जाती है। वैसे बड़े पुण्य से मनुष्य जीवन प्राप्त होता है, वह भी हिन्दुस्तान का मनुष्य! कितने पुण्यवान हो! लेकिन इस पुण्य का भी फिर दुरुपयोग होता है।
अपने घर में क्लेश रहित जीवन जीना चाहिए, इतनी कुशलता तो हम में होनी चाहिए। दूसरा कुछ नहीं आए तो उन्हें समझाना चाहिए कि 'क्लेश होगा तो हमारे घर में से भगवान चले जाएंगे। इसलिए तू ठान ले कि हमें क्लेश नहीं करना है।' और हम (घर के सदस्य) भी तय करें कि क्लेश नहीं करना है। तय करने के बाद क्लेश हो जाए तो समझना कि यह हमारी सत्ता के बाहर हुआ है। इसलिए वह क्लेश करता हो तो भी हमें ओढ़कर सो जाना है। वह भी थोड़ी देर बाद सो जाएगा। लेकिन अगर हम भी उनसे बहस करें तो?
क्लेश नहीं हो ऐसा निश्चय करो न ! तीन दिन के लिए तो निश्चय करके परिणाम देखो! प्रयोग करने में क्या हर्ज है? तीन दिन का उपवास करते हैं न स्वास्थ्य के खातिर? वैसे यह भी तय करके देखो। घर में हम सब मिलकर तय करें कि 'दादा बात करते हैं वह बात हमें पसंद आई है, इसलिए हम आज से क्लेश छोड़ दें।' फिर देखो।
प्रश्नकर्ता : यहाँ अमरीका में औरतें भी नौकरी करती हैं न, इसलिए औरतों को ज़रा ज्यादा पावर (रौब) आ जाता हैं, इसलिए हसबन्ड-वाइफ में ज्यादा किट-किट होती है।
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार दीवार से टकराएगा। वह ऐसा रौब मारे और वैसा रौब मारे पर हमें कुछ असर न हो तो उसका सारा पावर दीवार से टकराकर फिर उसको ही वापिस लगेगा।
प्रश्नकर्ता : आपके कहने का मतलब है कि हमें औरतों की ऐसी बातों को सुननी ही नहीं चाहिए।
दादाश्री : सुनो, सब ध्यान से सुनो, हमारे हित की बात हो तो सब सुनो और पावर का टकराव हो उस वक्त मौन धारण कर लो। हम देख लें कि कितना पावर का नशा किया है। उस नशे के अनुसार ही पावर इस्तेमाल करेगी न?
प्रश्नकर्ता (स्त्री): ठीक है। उसी प्रकार जब पुरुष भी व्यर्थ पावर दिखाएँ तब?
दादाश्री : तब हमें ज़रा ध्यान रखना है। आज थोड़े बहके हैं ऐसा मन में कहना, मुँह पर कुछ मत कहना।
प्रश्नकर्ता : हाँ... नहीं तो ज्यादा बहकेंगे।
दादाश्री : 'आज बहक गये है', ऐसा कहती हैं... सचमुच ऐसा नहीं होना चाहिए। कितना सुन्दर... दो मित्र आपस में ऐसा करते हैं क्या? ऐसा करें तब मैत्री टिकेगी क्या? इस प्रकार ये स्त्री-पुरुष दोनों मित्र ही कहलाते हैं अर्थात् मैत्री भाव से घर चलाना है और यह दशा कर डाली! क्या इसलिए लोग अपनी लड़कियाँ ब्याहते होंगे, ऐसा करने के लिए? क्या यह हमें शोभा देता हैं? तुम्हें क्या लगता हैं? यह हमें शोभा नहीं देता। संस्कारी किसे कहते हैं? घर में क्लेश हो, वे संस्कारी कहलाते हैं या क्लेश नहीं हो वे?
पहले तो घर में क्लेश ही नहीं होना चाहिए और अगर होता हो तो उसे रोक लेना चाहिए। थोड़ा हो ऐसा हो, हमें लगे कि अभी आग भड़केगी उससे पहले पानी छिड़क कर ठंडा कर देना। पहले की तरह क्लेशयुक्त जीवन जिए तो उसमें क्या लाभ? उसका अर्थ ही क्या?
दादाश्री : पावर आए तो अच्छा है न, हमें तो यह समझना है कि अहोहो! बिना पावर के थे, अब पावर आया तो हमें फायदा हुआ! बैलगाड़ी ठीक से चलेगी न? बैलगाड़ी के बैल ढीले हों तो अच्छा या पावरवाले हों तो?
प्रश्नकर्ता : पर गलत पावर करे तब गलत चलता है न? पावर सच्चा करती हो तो ठीक है।
दादाश्री : ऐसा है न, पावर माननेवाला नहीं हो तो उसका पावर