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पैसों का व्यवहार
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पैसों का व्यवहार
जितनी जिम्मेवारी से (दिल से) परायों का करें वह खुद का (कल्याण) करें।
भीतर अनंत शक्ति है। वे शक्तिवाले क्या कहते हैं कि 'हे चन्दुभाई। आपका क्या विचार है?' तब भीतर, बुद्धि बोले कि 'इस धंधे में इतना घाटा हुआ है। अब क्या होगा? अब नौकरी करके घाटा पूरा कीजिए।' भीतर अनंत शक्तिवाले क्या कहते हैं, 'हमसे पूछिये न, बुद्धि की सलाह क्यों लेते हैं? हमसे पूछिये न, हमारे पास अनंत शक्ति है। जो शक्ति घाटा कराती है उसी शक्ति के पास ही मुनाफा खोजिए न! घाटा कराती है दूसरी शक्ति और मुनाफा खोजते हैं और कहीं। इससे तालमेल कैसे बैठेगा?' भीतर अनंत शक्ति है। आपका 'भाव' परिवर्तित नहीं हुआ तो इस संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो आपकी इच्छानुसार नहीं फिरे। ऐसी अनंत शक्ति हम सबके भीतर है। पर किसी को दुःख नहीं हो, किसी की हिंसा नहीं हो, ऐसे हमारे लॉ (कानून) होने चाहिए। हमारे भाव का लॉ इतना कठिन होना चाहिए कि देह जायेगी पर हमारा भाव नहीं टूटेगा। देह भले ही चली जाये, उसमें डरने की जरूरत नहीं है। ऐसे डरते रहें तो कैसे चलेगा, कोई सौदा ही नहीं कर पाये। हमने तो ऐसे बड़े-बड़े दलाल देखें हैं, जो चालीस लाख रुपये की उगाही की बातें करता हो और ऊपर से ऐसा कहते हैं कि, दादाजी, अधिकतर सभी लोग उलटा बोलते (डरातें) हैं, तो क्या होगा? तब मैंने कहा, जरा धीरज रखनी पड़ेगी, नींव मज़बूत होनी चाहिए। रास्ते पर गाडियाँ इतनी तेज़ चलती हैं, फिर भी सब सलामत रहते हैं, तब क्या धंधे में से सेफ (सलामत) नहीं निकलेंगे? रास्ते पर, जरा जरा में टकरा जायेंगे ऐसा लगे, पर टकराते नहीं। क्या सभी टकरा जाते हैं? अर्थात जिस जगह घाव लगे उसी जगह भर जायेगा, इसलिए जगह मत बदलिए। नियम भी यही है।
हमारी जो-जो शक्ति हो उससे हम ऑब्लाइज (उपकृत) करें। तरीक़ा चाहे कोई भी हो, सामनेवाले को, सभी को सुख पहुँचाना। सुबह तय करना चाहिए कि आज मुझे जो कोई भी मिले उसे कुछ सुख पहुँचाना है। पैसे नहीं दे सकते तब भी सुख पहुँचाने के अन्य कई रास्ते हैं। समझा सकते हैं। कोई उलझन में हो तो धैर्य बँधाना चाहिए और पैसों से भी मदद कर सकते हैं न!
प्रश्नकर्ता : परायों का करें वह खुद का करें। यह किस तरह?
दादाश्री : सभी आत्माएँ सम-स्वभाव हैं। इसलिए जो परायों की आत्मा के लिए करे वह खुद की आत्मा को पहुँचे। और जो परायों की देह के लिए करे वह भी पहुँचे। फर्क सिर्फ इतना है, जो आत्मा के लिए करे वह अन्य रीति से पहुँचे, उसका मोक्ष में जाने का रास्ता खुल जाये।
और अकेली देह के लिए करें तो यहाँ (संसार में) सुख भोगते रहें। अर्थात्, इतना फर्क है।
प्रश्नकर्ता: मेरे मामा ने मुझे धंधे में फंसाया, वह जब-जब याद आता है तब मुझे मामा के लिए बहुत उद्वेग होता है कि उन्हों ने ऐसा क्यों किया होगा? मैं क्या करूँ? कोई समाधान नहीं मिलता?
दादाश्री : ऐसा है कि भूल तेरी है, इसलिए तुझे तेरे मामा फँसाते हैं। जब तेरी भूल नहीं रहेगी तब तुझे कोई फँसानेवाला नहीं मिलेगा। जहाँ तक आपको फँसानेवाले मिलते हैं न वहाँ तक आपकी ही भूलें हैं। मुझे (दादाजी को) क्यों कोई फँसानेवाला नहीं मिलता? मुझे फँसना है फिर भी मुझे कोई नहीं फाँसता और तुझे कोई फाँसने आये तो तू छटक जायेगा! पर मुझे तो छटकना भी नहीं आता। अर्थात् आपको कोई कहाँ तक फाँसेगा? जहाँ तक आपके बहीखाते का कुछ हिसाब बाकी है, लेन-देन का हिसाब बाकी है, वहाँ तक ही आपको फासेंगे। मेरे बहीखाते के सारे हिसाब चुकता हो गये हैं। कुछ समय पहले तो मैं लोगों से यहाँ तक कहता था कि भाई जिसे भी पैसे की तंगी हो, वह मझे एक धौल देकर मुझ से पाँच सौ ले जाना। तब वे लोग कहें कि, नहीं भैया. इस तंगी से तो मैं जैसे-तैसे निपट लूँगा, पर आपको मैं धौल दूँगा तो मेरी क्या गत होगी?
अर्थात् वर्ल्ड (संसार) में तुझे कोई फाँसनेवाला नहीं है क्योंकि वर्ल्ड का तू मालिक है, तेरा कोई मालिक ही नहीं है। जहाँ तक खुद